॥ जय साहेब की ॥

जीवनी

ठाकुर के पुत्र को जीव दान दिया

वैसे तो सिद्धोसिद्ध सन्त शिरोमणी मोजी महेश की अनेकोनेक घटनाये एवं चमत्कार दुनियाँ में अकसर होते रहे है जिसके भक्तों ने लाभान्ति होकर महिमा गुण गान किया है। ऐसे ही एक घटना गाँव दोलतपुरा जिला नागौर कि विशेष है। इस गाँव का निवासी भवर सिंह पुत्र ठाकुर तगतसिंह भी मोजी बाबा का भगत रहा है। वह भारतीय सेना में सैनिक पद पर कार्यरत था। करीब ११ साल की सैनिक सेवा करने के दौरान सन १९५१ में वह अत्यन्त बीमार हो गये। बिमारी ने भंयकर महामारी का रूप ले लिया। अब उन्हे सैनिक अस्पताल पूना में इलाज हेतु भर्ती करवाया गया। डाक्टरो की विशेष टीम ने भरपुर कोशिश की लेकिन पूर्णत: सफलता नहीं मिली। आखिर बिमार सैनिक भंवर सिंह ने डाक्टरो की टीम से पूछ ही लिया कि - आखिर मुझे कया हुआ है। डाक्टरो की टीम ने बताया की तुम्हे महामारी टी.वी. की बिमारी है, जिसका कोई अभी तक इलाज सम्भव नही हो पाया है है। यह बात सच भी थी कयोकि सन १९५१ के आसपास टी.बी जैसी महामारी का कोई विशेष इलाज हो पाना सुनिश्चत नही था। भंवर सिंह सिंह टी.बी की बिमारी जानकर बैहद चिन्तित हो उठा। उसने गुरू देव बाबा मोजी महेश का दिनरात सुमिरन कर विनम्र प्रार्थना करने लगा। गुरू देव मुझे इस बिमारी से बचाओ। मै जिन्दा रहना चाहेता ह। मुझे उम्मेद है कि आप ही मुझे इस बिमारी से मुक्त कर सकते हो। आपके सिवाय इस संसार में मेरा रक्षक कोई नहीं हैं। बाबा मोजी महेश… …मेरी मदद करो, अपने भक्त की मदद करो, मोजी बाबा मेरी मदद करो…, मै आपके शरण में हूँ बाबा मेरी मदद करो। इस प्रकार मोजी बाबा से प्रार्थना करते हुए, उनका ध्यान करते - करते नींद की झपकी मे खो गया। उसी दौरान दयालो सन्त शिरोमणी मोजी महेश ने साक्षात दर्शन देकर भंवर सिंह को चेतना देकर कहा। - भंवर थारी बिमारी टी.बी री रेत के टीबा में गई। तुझे कल सैनिक री नौकरी से छुटटी मिल जायेगी। सेवा निवृर्ती से आदेश मिलसी। अकड्सर धूणी माता की भभूती प्रसाद के रूप में ग्रहण करना और ललाट पर टीकी लगाना - थारी बीमारी पाछी कोनी आवे। भंवर सिंह ने महसूस किया की उसकी बीमारी में कुछ राहत मिल रही है। दूसरे दिन सेवा से निवृ्ती का आदेश पत्र भी प्राप्त हो गया और भंवर सिंह अपने गांव दोलतपुरा लौट आया और सारा वृतान्त अपने परिवार वालों को सुनाया। परिवार सहित अड़कसर धूणी जाकर पूजा अर्चना की और भभूती को मस्तक पर लगाकर चूटकी भर प्रसाद के रूप खाई। भभूती खाने और मस्तक पर लगाने मात्र से बीमारी कोसो दूर चली गई। वह बिलकुल स्वस्थ अवस्था में जीवन यापन करने लगा। करीब १८ चर्षों तक आन्नदमय जीवन का सूख भोगा। बाबा के इस चमत्कारीक आर्शीवाद से प्रभावित होकर उन्होने सपरिवार बाबा साहेब के मुख्य दरबार अड़कसर जाकर सवामणी ( प्रसादी ) की। इस प्रकार सच्ची लगन की बदोलत भंवर सिंह जैसे अनेको भक्तो ने बाबा की अनुकम्पा का वरदान प्राप्त कर अपने जीवन को सफल बनाया है। उपरोक्त ऐतिहासिक जानकारी भंवर सिंह अनुज भ्राता सुमेर सिंह निवासी दोलतपुरा से प्राप्त हुई।

भाई को दिव्य वचन

बाबा साहब के चाचा के पुत्र शिवनारायण जी जांगिड़ खाखोली वाले तन्दूरा के अच्छे मिस्त्री थे। नागौर जिले में उनकी बड़ी प्रसिद्धी थी। वे सालभर घर पर पूरा माल तैयार कर के मेले के अवसर पर ( डीडवाना, परबतसर, नागौर ) तन्दूरा बेचने जाते थे तथा उनके तन्दूरों को पसंद करने वाले लोगों की भीड़ जमा होती और घंटे भर में सारे तन्दूरे बेच देते थे। तन्दूरा का ढेर देखकर बाबा साहेब बोले शिवनारायण एक तन्दूरों अड़कसर आश्राम में भी भेंट कर दे, तब शिवनारायण जी गुस्सा करके कहा बाबा जी आप तो साधु हो गये हो हमें भी आप जैसा बनाओगें क्या ? एक तन्दूरा की कीमत २५० रू. है। २५० रू. दे जाबों और तन्दूरा ले जावो तब बाबा साहब ने कहा शिवनारायण बेच ले तन्दूरो। बाबा साहब ऐसा कहकर चले गए। उनके जाने के बाद शाम तक एक भी तन्दूरा नहीं बिका। शाम के ५ बजे गये। तब शिवनारायण जी ने अपनी गलती मानी और एक तन्दूरो अड़कसर धूणी के नाम कर एक तरफ रख दिया। तो मात्र आधे घण्टे में तन्दूरे बिक गए। शिवनारायण जी की मनोकामना पूर्ण हो गई। आगे आने वाली पूनम के दिन शिवनारायण जी अड़कसर धूणी पर जाकर तन्दूरा श्रद्धा से बाबा साहब को भेंट किया। तब बाबा साहब के वचनों पर पूर्ण विश्वास हो गया उसके बाद परिवार वाले बाबा साहब को पूजनीय संत की तरह संबोधित करते थे।

सरगोठ ठाकुर के पुत्र का जन्म

सरगोठ ठाकुर नारायण सिह जी से पहले की तीन पीढी तक कोई सन्तान नही होई। गोद लेकर ही बंश को आगे बढाया जाता था। ठाकुर साहब धर्म प्रमियों के साथ अड़कसर धूणी आश्रम में. पधारे। बाबा मोजी महेश जी को प्रणाम, आदर सत्कार सहित सतसंग में बैठे। कुछ देर पश्चात ठाकुर नारायण सिंह जी बाबा साहेब से निवेदन किया की महाराज मेरे गढ में तीन पीढी से पुत्र का जन्म नही हो रहा है। कृपालू दाता आप मेरे पर दया करो की - मेरा बंश आगे बढाने वाले बालक का जन्म हो जावे। बाबा साहेब कुछ देर सोचते हुऐ कहाँ आगे आने वाली पूनम के दिन सतसंग रखना। लक्कड़ स्वामी का हुक्म हो गया तो ज रूर आऊगा। ठाकुर साहब ने पूनम के दिन सतसंग रखी और बाबा साहेब को निमंत्रण भेज दिया। बाबा साहेब सरगोठ गढ मे पधारे तो ठाकुर साहब ने आदर सत्कार के साथ आसन पर बैठाया जल पान ग्रहण करवाया। सतसंग पूर्ण होने के बाद बाबा साहेब ने अड़कसर जाने को कहाँ। ठाकुर साहब ने बाबा साहेब को चुनड़ी का साफा पहनाया और विदाई दी गई। बाबा साहेब ने कहा साफा तो बहुत ही अच्छा है लेकिन चुनड़ी जैसा है। पहले चुनड़ी ओढने बाली बाई आयेगी। फिर पुत्र प्राप्ती होगी। समय बीतता गया। ५२ वर्ष की उम्र में ठकुराईन की कोख से पहले पुत्री व फिर पुत्र ने जन्म लिया। पुरे गाँव में खुशी की लहर दौड़ गई। ठाकुर साहब के खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मकराना मार्बल से सागल्या व अड़कसर धूणी धाम में बाबा सा का बंगला बनवाया। ठाकुर साहेब १२ घोड़ों सहित सब ठीकानो के काफिले के साथ अड़कसर धूणी धाम में पधारे। बाबा साहेब को प्रणाम कर सतसंग करवाई। और सवा ५ मण की सवामणी करवाई और पूरे गांव में बटवाई। उपरोक्त तत्य बोदूराम प्रजापत तारपुरा वाले तथा ठाकुर अमर सिंह ने बताई।

खाखोली में ढाढ़ियों को जीवनदान

एक बार अड़कसर आश्रम में सत्संग के समय में खाखोली से मगन जी ढ़ाढ़ी आश्रम पहुँचकर बाबा साहब को नमन कर सत्संग में बैठ गये। उसी वक्‍त बाबा साहब को दैविक शक्तिद्वारा ज्ञात हो गया था की मगन जी ढ़ाढ़ी क्यों आये हैं। सत्संग के पश्चात श्री मगन जी ढ़ाढ़ी को अपने पास बुलाकर ग्राम खाखोली के कुशल क्षेम पूछे तब श्री मगन जी ढ़ाढ़ी ने दु:खी मन से कहा कि पिछले दो वर्षों में हमार बिरादरी में अच्छे भले ५० - ५५ व्यक्ति महिला, बच्चे काल के ग्रास बन गये, क्या कारण है। अब तक पता नहीं चला, तब बाबा साहब ने कहा कि आने वाली पूर्णिमा को घर पर सत्संग रखना, लकड़ स्वामी का आदेश ( हुक्म ) हुआ तो में अवश्य आवूंगा। मगन जी ढ़ाढ़ी अगले दिन खाखोली लौट गये। बिरादरि वालों को एक कर परिजनों को सभी बातों से अवगत किया। निष्चित समय पर रात्री जागरण एंव सत्संग का कार्यकम किया गया, एक तरफ बाबा साहब का आसन लगाकर, गणेष वन्दना के साथ सत्संग का कार्यकम शु रू हुआ। इसी समय तारपुरा में बाबा साहब की बगीची में रात्रि जागरण एवं भजन कार्यकम चल रहा था, तारपुरा वाली ने रात्रि १२ बजे तक आरती करके सभी ने विचार किया कि ढाढ़ियों के सत्संग में खाखोली चलेंगे, इतने में ही अलख की आवाज़ जोर से आई सभी ने देखा बाबा साहब मोजी महेश अपने भगतों के साथ आ रहें हैं। बाबा साहब ने ५ मिनट तारपुरा बगीची में ठहर कर सभी से कहा की चलो ढाढ़ियों के सत्संग में खाखोली में भजन गायेंगे। बाबा साहब के पीछे सभी जय घोष करते हुये ढाढ़ियों के घर पहुँचे। खाखाली निवासियों ने ढाढ़ियों ने बड़ी विनम्रता से स्वागत किया तथा बाबा साहब को श्रध्दा से आसन पर बैठाकुर नियमानुसार सत्कार कर जलपान करवाया उसके पश्चात बाबा साहब बान्सुरी बजाने लग गये तथा सत्सगं चल रहा था। कुछ समय बाद उठकर बान्सुरी बजाते हुये नाचते पूरी गुवाड़ी में घूमे। गुवाड़ी परिसर के एक कोने में रूक गये एंव श्री मगन जी ढ़ाढ़ी को बुलाकर कहा की इस जगह वह प्रेत आत्मा रहती है इसी कारण गत वर्षों में जन हानि हुई है। अत: आप ने सदगुरू को स्मरण कर जोर से ऐडी से दबाकर ढ़ाढ़ी समाज को उस प्रेत आत्मा से सदैव के लिए मुक्ति दिलाकर इस समाज का उपकार किया तथा सभी से जय श्री साहेब जी कह कर अपने भक्तों के साथ अड़कसर को लिये प्रस्थान किया।

सत्संग में सन्मार्ग के लिये आदर्श विचार

लोक कहावत के अनुसार योगी का योग भ्रष्ट हो सकता है लेकिन नष्ट नहीं हो सकता। यहि कहावत श्रध्येय मोजी महेश जी के साथ भी घटित हुई श्रध्येय मोजीदास जी इस जन्म की भक्ति व पूर्व जन्म की संचित भक्ति के कारण ही बाबा साहब को एक दम अन्त: करण से वैराग्य भाव जागृत होने के कारण सांसारिक घर परिवार एवं बच्चों का मोह त्याग कर अपने दिव्य प्रकाश को सर्व साधारण दीन दुखियों की उन्नति में लगा दिया। एवं आमजन में किसी जाति संप्रदाय के भेद से हटकर वचन सिद्ध संत कहाये।

आपने ईश्वर कृपा व वचन सिद्ध से मिली भूमि पर चैत्र सुदी एकम विक्रम सम्बत १९०२ चैत्री नवरात्रा में श्री मोजीदास जी के कर कमलों द्वारा अड़कसर घूणी की स्थापना हुई। इस दिव्य घूणी पर भक्ति कर अपने कल्याण मय दिव्य प्रकाश से दैविक एवं दैहिक सन्तापों का निवारण कर दीन दुखियों को आत्म शान्ति प्रदान की एवं धूणी वचन सिद्ध संतों की तपोस्थली बनी। जो भी आज तक सच्चे भाव से श्रध्येय मोजी महेश की धूणी पर मनोकामनाएँ लेकर आता है वो पूरी होती है। बाबा साहब की तपोस्थली पर प्रतिदिन सत्संग होता रहता है। प्रतिदिन आने वाले श्रद्धालुओं को आत्म शान्ति का अदभुत अनुभव होता है। क्योंकि बाबा साहब अपने सत्संग में सदैव सुखी जीवन जीने के लिये सत्योपदेश करते थे।

जैसे: -

* मनुष्य जीवन का मुख्य उध्देश्य भगवत प्राप्ति।

* मनुष्य जीवन में सत्य पर चलते हुये परम पिता परमात्मा का निष्काम भाव से ध्यान करना।

मनुष्य जीवन में साधना का नियम नित्य व अटल रहना चाहिये। जीवन के सुख एवं दुख को ईश्वर का प्रसाद समझकर हानि लाभ उसी के भरोसे छोड़कर स‌त्‌‌त प्रयास करते रहना एवं भगवान में अटल विश्वास रखना चाहिये।

* ईश्वर प्राप्ति के लिए दो बातों का विशेष ध्यान रखें।
१ ) हमें भगवान की शरण में पहुँचना है।
२ ) सत्य मार्ग कौन सा है जिसे अपनाकर मन व आत्मा को चिर शांति मिले एवं ध्यान लगाने पर मन इधर उधर न भटके।

* भगवत प्राप्ति के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति की चाहे जो भी हो जाये मुझे इस ओर सत्य मार्ग पर चलते हुए आगे बढ़ना है।

* मनुष्य जीवन में सदैव झूठ का पक्ष छोड़कर सत्य बोलना एवं सत्य मार्ग पर चलने से आत्म शक्ति मजबूत होती है एवं सफलता भी मिलती है।

* मनुष्य को परिश्रम करके नेकी की कमाई कमा कर परिवार का भरण पोषण करना चाहिये।

* जो साधक भगवान से सच्ची श्रद्धा एवं निष्काम भाव से भगवान के स्व रूप का ध्यान लगाकर चिंतन एवं जप करता है उसी को भगवत प्राप्ति का सुख अनुभव होने से यह जीवन सफल हो जाता है इसलिए भक्तों / साधकों अपना जीवन सुधारने के लिए तो कुछ करो! जय साहेब की !

श्री लालू जी नाई तारपुरा वालों के घर सत्संग

श्री लालू जी नाई तारपुरा वाले श्रध्येय बाबा साहब के बचपन के अंतरंग( लंगोटिया ) मित्र थे। एक बार साहब को सत्संग में आने के लिए पहले ही निमंत्रण भेज दिया। निश्चित समय पर श्राध्येय मोजी महेश जी सत्संग में आये उन्हें श्री लालू जी नाई ने ससम्मान निर्धारित आसन पर बैठाकुर बाबा साहब के मेहन्दी लगाई एवं जल पान करवा कर श्रध्येय बाबा साहब से कहा मेरे घर में किड़ियों का बिल है इसे बंद कर दो। पर श्रध्येय बाबा साहब ने श्री लालू जी नाई से कहा को यह तो जीव है आते जाते ही अच्छे लगते हैं। व अच्छी तरह समझाने के बाद भी श्री लालू जी नाई ने किड़ियों के बिल को बंद करने के लिए श्रध्येय बाबा साहब से पुन: विनम्र आग्रह किया। आप तो इसे बंद कर ही दो। अत: श्री लालू जी के आग्रह पर श्रध्येय बाबा साहब ने कठोर हृदय से कमन्डल से जल लेकर किड़ियों के बिल पर पानी के छींटे मार कर कहा लालू राम जी आज के बाद तुम्हारी गुवाड़ी में किड़ियाँ नहीं आवेगी। इसकी नाल बंद कर दी है। सत्संग के पश्चात श्रध्येय बाबा साहब अड़कसर के लिए प्रस्थान कर गये। श्री लालू जी के चार पुत्र थे। इन चारों के कोई संतान नही हुई। अंत में हताश होकर श्री लालू जी नाई ने अपने ही दोहिते को गोद रखा उसके आगे चलकर भविष्य में विवाह के पश्चात सन्तान प्राप्ति हुई।
अत: संत महात्माओं से कभी जिद बहस नहीं करनी चाहिए।

अग्रवाल सेठिया पर बाबा साहब की कृपा

अड़कसर के पास एक ग्राम में एक अग्रवाल सेठिया श्रध्येय बाबा साहब का श्रद्धालू पक्का भक्त था। रोज सत्संग व आरती के समय बगीची में आया करता था। वह बहुत गरीब था। कुछ समय के पश्चात सेठिया की पुत्रियों का विवाह था। विवाह का निमंत्रण देने श्रध्येय बाबा साहब के पास आया एवं निमंत्रण देने के पश्चात अपनी निम्न आर्थिक स्थिति से श्रध्येय बाबा साहब को अवगत करा कर निवेदन किया कि मेरी पुत्री का विवाह निर्विघ्न सम्पन्न हो जावे एवं भोजन व्यवस्था में किसी बात की कमी नहीं रहे ऐसी कृपा करना। तब श्राध्येय बाबा साहब ने अपनी एक भगवा च‌‌‍द्‌दर उस सेठिया को देकर कहा कि विवाह के लिए जो भी मिष्ठान बने उस पर यह मेरी च‌‌‍द्‌दर ढ़क देना व कोठयार में एक धर्म परायण व्यक्ति को बैठाकुर जब भोजन परोसने से पहले इस च‌‌‍द्‌दर का एक कोना उठाकुर मिठाई निकालते रहना कोई कमी नहीं आयेगी। सेठिया श्रध्येय बाबा साहब की च‌‌‍द्‌दर लेकर प्रसन्न हो अपने ग्राम लौट गया।

ग्राम में बारात आने से पूर्व हलवाई मूंग की दाल का हलवा बना रहे थे। तोरण सियाले के समय श्रध्येय बाबा भी अपने शिष्यों के साथ गाँव में आ गये थें। उनके हाथ में मरे हुए ऊँट का गोड़ा ( ऊँट के पाँव की हड्‌डी ) उसे पानी से साफ धोकर हलवाई के पास आकर सेठिया को बुलाया। जिस कडा़ई में मूंग की दाल का हलवा बनकर तैयारी पर था उसमें चम्मच की तरह उस उँट की पाँव की हड्‌डी से हिला दिया, सभी स्तब्ध रह गए व उसी हड्‌डी को हलवे में से निकाल कर सेठिया के हाथ में देकर लकड्स्वामी का जयकारा लगाते हुए अड़कसर बगीची की ओर प्रस्थान कर गए। सेठिया और के प्रत्यक्षदर्शी यह देखकर आश्चर्य चकित एवं आनन्दित हो गए कि जो हड्‌डी उन्होंने सेठिये के हाथ में थमाकर कहा था, खूब आनन्द से अपनी पुत्री का विवाह करके विदाई देना। वह ऊँट के पाँव की हड्‌डी न होकर सोने चाँदी का बड़ा चम्मच था। सेठिया ने श्रध्येय बाबा साहब को जलपान ग्रहण करने की बहुत विनती की परन्तु श्रध्येय बाबा साहब गुरुदेव का जयघोष करते हुए अड़कसर बगीची की ओर अपने शिष्यों के साथ लौट गए। सेठिया श्रध्येय बाबा साहब की कृपा से मालामाल हो गया व सआनन्द पुत्री का विवाह सम्पन्न कर आजीवन श्राध्येय बाबा साहब का कृपा पात्र रहा।

इस तथ्य के साक्षी कुचामण के पास बुड़सू के गायों वाले बाबा जिनकी आयु ईश्वर कृपा से १५६ वर्ष की है।

चितावा थाणा अधिकारी को परचा

लादूदास जी बाबा साहब के गुरु भाई थे। एक बार लादूदास जी किसी कार्य से चितावा गये थे। इनके पास गांजा था। किसी भक्त के पास बैठकर लादूदास जी गांजा पीने लग गये। इस वक्‍त चितावा थाणेदार दो तीन सिपाई सहित लादूदास जी के पास आया और कहा बाबा जी आपके पास गांजा है। संत श्री लादूदास जी ने कहा हां मेरे पास गांजा है यह तो संतों का प्रसाद है। थाणेदार चिड़ गया और झोले की तलाशी लेकर गांजा ले लिया और लादूदास जी को थाणे में ले जाकर बन्द कर दिया। लादूदास जी थाणेदार से छोड़ने हेतु विनती की लेकिन थाणेदार ने नहीं छोड़ा। किसी भक्त ने अड़कसर आकर बाबा साहब मोजीदास जी को अवगत कराया कि आपके गुरु भाई को झोली में गांजा होने के कारण थाणो में बन्द कर दिया। श्री बाबा साहब मोजी महेश जी ने कहा राम राम मोडा ने थाणेदार कोई पकड़े है। मोडा देसी गोडा। बाबा साहब मोजी महेश दिव्य शक्ति के कारण पैदल ही चितावा के लिये रवाना हो गये। चितावा गाँव के बाहर से बाबा साहब ने अलख की आवाज़ लगाई जो थाणा में प्रवेश करते अलख की आवाज़ बन्द की और अलख की आवाज़ के साथ ही थाणे में जहाँ लादूदास जी बन्द थे ताले खुल गये। थाणेदार मोजी महेश जी को देखकर घबरा गया। पैरों पड़ गया और माफी मांगी। इस तरह बाबा मोजी महेश जी चितावा थाणे से लादूदास जी को जैल मुक्त करवा कर लाये।

इस बात के साक्षी पोकर जी जांगिड़ अड़कसर वाले है।

बस वालों को चमत्कार

दांता से कुचामण एक बस सेवा शुरु हुई। बस बिलकुल नई थी। बाबा साहब मोजी महेश को कुचामण जाना था। बस में बैठ गये। एक दो कोश ( किलोमीटर ) जाने के बाद कन्डकेटर ने बाबा साहब से किराया मांगा। मोजी महेश ने कहा मेरे पास रुपया होता तो मोड़ा क्यों बनता। अत: किराया की वजह से बस कन्डेक्टर ने बस से नीचे उतार दिया। बाबा साहब बस से नीचे उतर कर पास में ही एक खेजड़ी की छायां में बैठ गये। बस थोड़ी दूर जाकर बन्द हो गई ड्राईवर ने खूब कोशिश की लेकिन बस चालू ही नहीं हुई। दो घन्टे बीत गये। बस के यात्रियों ने कन्डेक्टर को कहा खेजड़ी के नीचे बैठे बाबा को मनाओ। तब बस चलेगी। बस ड्राईवर, कन्डेक्टर व यात्रियों सहित बाबा मोजी महेश से माफी मांगी और उनका स्वागत कर बस में बैठाया। बाबा साहब स्वयं इंजन के बोनट पर दो तीन हतौड़ा की लगाई और कहा भवानी चाल, अब तो चाल। बस तुरन्त रवाना हो गई। आज भी इस रुट पर नई बस शुरु होती है तो ड्राईवर द्वारा हतौड़ा मारकर चलाई जाती है।

इस बात के साक्षी पोकर जी जांगिड़ अड़कसर वाले है।

कजाराम चौधरी अड़कसर को दिव्य बचन

कजाराम चौधरी अड़कसर बाबा मोजी महेश के पक्के भक्त थे। कजाराम जी शाम को रोज सत्संग में बगीची आते थे। एक दिन बाबा साहेब ने कहा कजाराम मेरे को असम जाना है। किराये हेतु ११५ रू. देना। कजाराम जी चोधरी ने बाबा साहब को ११५ रू. तुरन्त दे दिये। कजाराम ने बाबा साहब से निवेदन किया कि मैं ( कजाराम ) ५ - २० दिन का मेहमान हूँ इसलिए जल्दी असम से आ जाना। बाबा मोजीदास जी ने कहा कजाराम मैं नहीं आऊंगा तब तक तेरे को मरने नहीं दूंगा। बाबा साहब असम से ४ माह पश्चात आये। उसी दिन ११५ रू. कजाराम जी को दे दिये कजाराम जी ने ४० रू. बाबा साहब के पुन: भेंट कर दिए। कुछ देर बाद दिव्य शक्ति के द्वारा बाबा साहब ने कहा कजाराम थारे मरण को कोल वचन पूरा हो गया। कल शिवरात्रि है। शिवरात्रि के दिन शरीर छोड़ेगा और बाबा साहब ने कहा वैसा ही हुआ।

कजाराम जी का पोता सोनाराम जी इस बात के साक्षी है।

कजाराम जी की गंगा प्रसादी धूमधाम से की

कजाराम जी चौधरी अड़कसर ग्राम जागीरदार की तरह रहते थे। धन धान्य से भरपूर थे। ग्राम में पंच भी थे। आस पास के ५ ग्राम व सम्बन्धियों को गंगा प्रसादी हेतु निमन्त्रण भेजा। ग्यारह के दिन चीणी की बोरी से पकवान बनवाए। ५ क्विंटल पकवान लाडू, बुंदियां, सिरा, पकौड़ी आदि डांगड़ी की रात को ही ५ गांव वालों को खाना खिला दिया। कजाराम के पुत्र पन्ना लाल जी घबरा कर बाबा साहब के पास बगीची में गए। बाबा साहब से निवेदन किया कि पकवान मिठाई जो आज ही खत्म हो गई कल गंगा प्रसादी है, क्या करें। बाबा साहब ईज्जत जासी। बाबा साहब ने कहा घबराओ मत पन्‍नालाल। बाबा साहब ने पन्‍नालाल को ५ लाडू दिये और एक च‌‌‍द्‌दर दी। लाडू भगवान के सामने रखना और कहना हमारी लाज रखना। च‌‌‍द्‌दर से बचे हूऐ माल को ढ़क देना। एक बार भण्डार को बन्द कर देना एक घंटे के बाद कोठार में किसी अच्छे भक्त को बिठा देना चदूदर का एक कोना ऊँचा कर मिठाई लेकर पुन: ढक देना। मेहमानों, गाँव वालों को खूब प्रसादी खिलाना पन्‍नालाल जी ने ऐसा ही किया। गंगा प्रसादी के दूसरे दिन भी लोगों को खूब मिठाई खिलाई तथा पूरे गाँव में गंगा प्रसादी वितरण की। गाँव के पंच कह रहे थे कि चीणी की २० बोरी ( २० क्विंटल ) मिठाई बने उतने लोग गंगा प्रसादी ले ली। बाबा साहब ने कजाराम की गंगा प्रसादी धूम धाम से सम्पन्न कराई।

पन्‍नालाल ने कार्य सम्पन्न होने के बाद दोनों बेटों सोनाराम जी एवं डालूराम जी को कहा बाबा मोजीदास जी महाराज ने लाज रख ली। ५ क्विंटल चीनी की मिठाई कम से कम २०,००० आदमी जीम लिये। बाबा साहब की कृपा से २० क्विंटल चीनी की मिठाई की एवज में ५ क्विंटल चीनी से गंगा प्रसादी धूम धाम से हो गई। इसलिए पन्नालाल जी चौधरी ने खुश होकर दोनों बेटों की राय से १२ बीघा जमीन की रजिस्ट्री करवा कर कुछ मिठाई सहित पूरा परिवार सहित बाबा मोजीदास जी की बगीची में जाकर भेंट कर बाबा साहब जी से आशीर्वाद प्राप्त किया।

इस बात के साक्षी पन्नालाल के पुत्र सोनाराम हैं।

बाबा साहब का शक्ति प्रदर्शन

एक बार ग्राम बल्दु में जांगिड़ समाज में मौसर ( गंगा प्रासादी ) का आयोजन था। इसमें मोजीदास जी अपने भक्तों के साथ उपस्थित थे। वहाँ एक पहलवान एक हाथ में रुमाल से अपने पूँचे को बांध रखा था तथा दूसरे हाथ में लकड़ी का ठेगा ( रोक ) लगाकर एक मण का पत्थर का माला लगा रहा था। जोर से आवाज़ लगाई की किसी जांगिड़ ने मां का दूध पिया हो तो माला लगाकर दिखाए। श्रध्येय बाबा साहब ने इस चुनौती को सुनकर वहाँ आ गये। उसी पहलवान के सामने उससे ( एक मण का पत्थर ) माला को बिना लकड़ी के ठेगा ८ बार माला लगाया। बाबा साहब ने उस पहलवान को ललकार कर कहा कि तुमने मां का दूध पिया है तो ९ बार माला लगाकर बता दे। यह सुनकर पहलवान नत मस्तक होकर बाबा साहब के चरणों में अपना सर रखकर क्षमा चाही। उस वक्‍त क्षमता से अधिक भार उठाने के कारण बाबा साहब के पेट में नस सरक गई ( गांठ जैसी हो गई )। अत: उस जगह बाबा साहब ने चमड़े का बेल्ट आजीवन लगाकर रखा। वे औरों के कष्ट को हर लेते थे पर अपना उपचार कभी नहीं किया। सन्त सभी पर अपना कृपा प्रसाद बांटते रहते हैं पर अपना भला कभी नहीं करते वे उस पीडा को अपने साथ प्रसाद रूप में सदैव अपने पास ही रखते हैं।

इस बात के साक्षी ग्राम माइनवास ( कोलिया ) के संत श्री लहरीदास एवं केशर बाई गांव - कुड़ली हैं।

अपने तप से प्रेत यौनी से मुक्त किया

एक बार श्रध्येय बाबा साहब व श्री भूरापुरी जी तारपुरा वाले आवश्यक कार्य से ऊँट पर सवार होकर रात्रि में ललासरी ग्राम जा रहे थे। रात्रि करीब १२ बजे खोड़ाला तालाब में तरह तरह की आवाज़ आने लगी। कभी बकरी की, कभी भेंस की, कभी भेड़ एवं कभी अन्य जानवरों की आवाज़ निकाल कर डराने का प्रयास किया। श्रध्येय बाबा साहब जी दिव्य शक्ति से समझ गये कि किसी प्रेतात्मा की आवाज़ ह। अत: पहले श्री भूरापुरी जी को समझाकर कि डरना मत। मैं तेरे साथ हूँ। ऊँट को रोककर नीचे बैठाया व दोनों ऊँट से उतर कर श्रध्येय बाबा साहब ने करुणा से प्रेतात्मा को आवाज़ दी रात में क्यों चिल्ला रहा है। मेरे पास आजा, लकड़स्वामी थारो भलो कर देसी, प्रेतात्मा से मुक्ति कर देसी। थोड़ी समय बाद प्रेतात्मा असली रुप में श्रध्येय बाबा साहब के चरणां में गिर पड़ा, तब श्रध्येय बाबा साहब ने अपने तपोबल से उस प्रेतात्मा को प्रेत यौनी से मुक्त कर दिया एवं उसका सदैव के लिये कल्याण कर दिया।

उपरोक्त बात श्री बोदूराम जी प्रजापत तारपुरा वाले ने अवगत कराई।

मरणासन्न केसर बाई ने नया जीवन पाया

श्रध्येय बाबा साहब खाखोली तारपुरा के मध्य कुए के पास वाली बगीची में बालाजी के मन्दिर में विराजमान थे। उनकी सेवा में फोगड़ी ग्राम की केसर बाई साधु वेश में अपनी सेवाएँ देती थी। तारपुरा बगीची में बाबा साहब के मन्दिर की पूजा आरती पंडित रामकुंवार जी करते थे।

एक बार किसी बात को लेकर पंडित रामकुंवार जी और केसर बाई में कहा सुनी हो गई दोनों आरोप प्रत्यारोप में इतने अधिक उलझ गये कि भावावेश में आकर केसर बाई ने कुचेले की ५ पातड़ी कूट कर पानी में मिलाकर एक साथ पीते ही केसर बाई के होश हवास उड़ गये, घबराकर अपनी जान बचाने क॑ लिए श्रध्येय बाबा साहब के पास दौड़कर गई, वहाँ पर पंडित रामकुंवार जी श्राध्येय बाबा साहब को घटित घटना से अवगत करवा रहे थे एवं भावावेश में केसर बाई द्वारा कुचेले की पातड़ी पीने को घटना बता दिया। श्रध्येय बाबा साहब ने केसर बाई को घबराई हुई हालत में देख कर कहा 'देखो रे बाई केसर मीरा बनी है'। श्रध्येय बाबा साहब ने केसर मिला कच्चा दूध केसर बाई को पिलाया दूध पीने के बाद केसर बाई को उल्टियाँ होने लगी और उल्टी के साथ कुचेला का जृहर बाहर निकल गया। उस उल्टी को पास में बैठा हुआ कुत्ता चाट गया। थोड़ी देर इधर उधर घूमता हुआ एक दम गिर पड़ा एवं कुत्ते के गिरते ही दु:खद प्राणांत हो गया।

इस घटना को बगीची में उपस्थित सभी लोगों ने देखा ईश्वर कुपा एवं बाबा साहब की कृपा से केसर बाई को नया जीवन मिला। केशर बाई की समाधि फोगड़ी बगीची में है।

घटना कोे साक्षी श्री बोदुरामजी प्रजापत तारपुरा बाला ने अवगत कराई।

बेरी के ठाकुर श्री बलदेव सिंह जी को पुत्र प्राप्ति

तारपुरा बगीची के बालाजी मंदिर में श्रध्येय बाबा साहब सत्संग में हरि गुण गा रहे थे। तभी बेरी के ठाकुर श्री बलदेव सिंह जी अपने साथियों के साथ सत्संग में आए एवं बाबा साहब को श्रद्धा से प्रणाम कर पुत्र प्राप्ति की कामना कि। तल श्रध्येय बाबा साहब ने ध्यान लगाकर ठाकुर श्री बलदेव सिंह जी से कहा कि मंदिर में आने जाने वाले यात्रियों को पानी पीने का साधन नहीं है। अत: मंदिर के पास कआँ खदवा दो जिससे आने जाने वाले यात्री कुए से पानी निकाल लेंगे एवं यहाँ के पत्थर गीले हो जाएंगे तो लकड़ स्वामी की कृपा से थारो घर भी आलो कर देशी। बाबा साहब को अमृत वाणी को सुनकर बेरी ठाकुर ने शिल्पियों को बुलाकर कुआं खुदाई का कार्य यथा शीघ्र शरू करवाया। सभी के अथक परिश्रम से कुआंँ शीघ्र तैयार हो गया।

उधर ईश्वर कृपा से ७० वर्ष की उम्र के ठाकुर साहब को घर में ठकुराईन ने बालक को जन्म दिया। जिसका नाम खुशी से अमर सिंह रखा गया। इस जन्मोत्सव से बेरी तथा खाखोली, तारपुरा एवं आस पास को गाँव में खुशियों से बधाइयाँ गाई गई। ठाकुर श्री बलदेव सिंह जी ने श्रध्येय बाबा साहब के स्थान पर आस पास गावों से आमंत्रित सदस्यों की उपस्थिति में सत्संग करवाई एवं बगीची में सभी को दाल बाटी चुरमे की प्रसादी में भोजन करवाया। नये कुए के अधीन श्रध्येय बाबा साहब को १०० बीघा जमीन भेंट की जिससे श्रध्येय बाबा साहब ने जन हित में लगा दी।

वर्षा योग

विक्रम संवत २००८ के लगभग तारपुरा बगीची में सत्संग चल रहा था। बीच - बीच में श्रध्येय बाबा साहब जनहित में प्रवचन भी कर रहे थे। श्रावण मास था भक्तों ने श्रध्येय बाबा साहब से कहा कि एक छोटी सी बदली खाखोली तारपुरा ग्राम के उपर से बीना बरसे आगे निकल गईं श्रावण सूखा जा रहा है। वर्षा हों जावे तो जीव जानवर सभी सुखी हो जावे, तब श्रध्येय बाबा साहब ने योग साधना में ध्यान लगाकर कुछ समय बाद कहा कि लकडस्वामी मेरी रखले और बारीश करवा दे नहीं तो गाँव वाले कहेंगे यह मोड़ा एक माह से बैठा रोटियाँ खा रहा है और कोई काम नही है। यह बात कहते ही ईश्वर कृपा एवं गुरू लकड़स्वामी की कृपा से हवा का रूख बदला तपन हुई एवं दूर गई बदली हवा के रूख से लौट कर आई और इतनी वर्षों हुई कि आसपास के सभी गावों में खूब वर्षों हुई, सभी नाले तलईयाँ पानी से भर गई। सभी गावों में हर्ष की लहर दौड़ गईं। यह देख कर श्रध्येय बाबा साहब ने हर्षित होकर श्रद्धा से कहा लकड़ बादली ने फैकी पकड़ गांजा की चिलम पीते जावे और बार - बार कह रहे थे। लकड़ बादली ने फेैकी पकड़ सारे सत्संगी हर्षित होकर जयकार लगाने लगे वर्षा से सारा वातावरण शान्त एवं पशुओं के लिए हरा - भरा हो गया। यह सब गुरू एवं ईश्वर की कृपा पर निर्भर है सिर्फ आपका विश्वास दृढ़ होना चाहिये, कठिनाई / समस्या के सभी मार्ग आगे से आगे खुल जाते हैं।

उपरोक्त बात श्री बोदूराम जी प्रजापत ने अवगत कराई।

परम सिद्ध श्री गोपीचन्द एवं भरतरी से भेंट

एक बार तारपुरा बगीची में श्रध्येय बाबा साहब सत्संग कर रहे थे। उस सत्संग में थोड़े समय बाद पंडित गोपीराम जी तथा श्री लालू जी नाई भी सत्संग में आये। सत्संग के बाद श्रध्येय बाबा साहब ने कहा गोपीराम जी अड़कसर बगीची में एक कुँए का कार्य चल रहा है। न बहुत चौड़ा ( गोलाई कुए की ) होने से उसे खुदवाने में काफी धन व्यय होगा इतने रुपयों की व्यवस्था कैसे होगी कहाँ से लायेंगे। पंडित श्री गोपीराम जी ने कहा बाबा साहब आप हमारे साथ असम चलो असम में आपके बहुत बड़े सेठीये भक्त है। श्रध्येय बाबा साहब ने कहा पंड़ित मैं चन्दे के लिये किसी को भी नही कहूँगा। श्री गोपीराम जी ने कहा ठीक है, महाराज आप कुछ न कहना हम व्यवस्था कर लेंगे आप तो केवल हमारे साथ चलो।

कुछ दिन बाद एक दिन तीनों एक साथ असम गये वहाँ एक सेठजी के निवास पर ठहरे वहाँ सांय सत्संग का आयोजन चल रहा था। उस सत्संग में १२ - १३ वर्ष के दो सुन्दर व हृष्ट पुष्ट बालक आये एवं श्रध्येय बाबा साहब ने प्रणाम कर आपस में अभिवादन होने के पश्चात दोनों बालक श्रध्येय बाबा साहब के दाएं - बाएं बैठ गये, श्रध्येय बाबा साहब ने गांजे की चिलम भरकर दोनों को स्नेह भेंट की सभी ने थोड़ी थोड़ी चिलम पी व खूब आपस में एक घंटे तक वार्तालाप की, फिर अभिवादन करने के बाद दोनों बालक चले गये, सत्संग के समाप्ति के बाद भोजन कर सभी विश्राम कर रहे थे। तब दोनों ने ( श्री गोपीराम जी,लालू जी ) श्रध्येय बाबा साहब से पूछा वे दोनों चंचल बालक कौन थे। श्रध्येय बाबा साहब ने कहा यह तो रमता जोगी राम है। मेरे लंगोटिये हैं। हम आपस में समय समय पर मिलते रहते हैं। पर दोनों ने श्रध्येय बाबा साहब से कई बार आग्रह किया कि हमें बता दो वे दोनों अनुपम सुन्दर बालक कौन थे। आपको हमें बतलाना ही पड़ेगा तब श्रध्येय बाबा साहब ने कहा वे दोनों बालक श्री गोपीचंद एवं श्री भरतरी थे। तुम्हारे आग्रह पर मैने तुम्हे बतला तो दिया, पर अब वे जब भी मुझ से भेंट करने आयेंगे तब तुम उन्हें सशरीर न देख पाओगे। सही बात जानने के बाद पंडित श्री गोपीराम जी एवं तिलोक जी को बहुत पछतावा हुआ।

असम भ्रमण में कई श्रद्धालुओं से कँए का कार्य पूरा करवाने हेतु भरपूर सहायता राशि लेकर तीनों अड़कसर लौट आए एवं सभी के राहयोग से एवं परिश्रम से शिखर बन्ध बड़ा कुआँ तैयार हो गया जिसका शीतल जल प्रचुर मात्रा में कुए में रहता है।

उपरोक्त तथ्य श्री बोदूराम जी प्रजापत ने नन्दकिशार जांगिड़ को अवगत कराया।

संत से अभद्रता एवं अपमान का दुष परिणाम

सांगलिया धुणी के सभी संत बहुत ही चमत्कारी एवं दयालु थे एवं वर्तमान में भी चमत्कार है।

ध्यान लगाकर पढ़ना, संत के समाधि लेने के बाद भी आपकी आस्था दूढ़ है तो आपको उनके चमत्कारों का साक्षात समय समय पर हो जावेगा। संत महात्मा जात - पात, ऊँच - नीच में विश्वास नहीं करते सभी चमत्कार जगत प्राणियों को सम भाव से देखते हैं एवं व्यवहार करते है।

बहुत पुरानी बात है एक बार श्रध्येय संत मीठाराम जी गाँव के हरिजन के घर पर बैठकर आपस में एक ही हुक्का पी रहे थे। यह बात किसी ने सरगोट ठाकुर सा को बता दी, कुछ दिनों के बाद श्रध्येय संत मीठाराम जी सरगोट ठाकुर सा के गढ़ में गये। वहाँ बैठकर वहाँ रखा हुआ हुक्का पीने लगे। जैसे ही ठाकुर सा ने हुक्का पीते हुए बाबा मीठाराम जी को देखते ही कहा कि मोडा थारो धर्म तो भ्रष्ट कर ही लियो है, म्हारो क्‍यों कर रीयो है एवं अपशब्द बोलने लगे एवं क्रोध से बोलते बोलते आपा खो बैठे एवं बाबा मीठाराम जी पर तीन चार जुतियों से प्रहार कर बैठे। तब श्रध्येय बाबा मीठाराम जी को भी कोध आया एवं अपने कोध के कारण गढ़ से बाहर निकल सीधे शमशान भूमि पर पहुँच वहाँ की भस्म पर अपनी जूती से पीटते हुए मन्त्रीचारण करने लगे जिस कारण एसी विभिन्‍न घटना घटित हुई, जिसके कारण गाँव के सभी ग्राम वासी स्तब्ध रह गाए। गढ़ के चबतरे पर ठाकुर सा बैठे थे, उपर गोखडे़ में ठकुराईन बैठी अपने पुत्र के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। उधर घाड़े पर सवार कुँअर गढ़ में प्रवेश करते ही घोड़े से गिर गए। उधर अचानक गोखड़ा चरमाकर ठकुराईन समेत चबूतरे पर बैठे सरगोट ठाकुर सा पर गिरने से तीनों का तत्काल प्राणांत हो गया, यह दुःखद घटना आग की तरह गाँव में फैल गई व सारे गाँव वाले गढ़ में एकत्रित हो गए।

उधर संत मीठाराम जी भस्मी पर जुती ठोकते ही जा रहे थे। एवं कह रहे थे कि अभी एक और बाकी है। यह बड़ा होकर किसी के जूती मारेगा, इसलिए उसे भी बुला रहा हूँ। यह बात सुनते ही किसी समझदार व्यक्ति ने तुरन्त दौड़कर गढ़ में रूदन कर रही कवरानी एवं उसके गोद में छोटे से कँवर को तुरन्त साथ लेकर सभी समझदार गाँव वालों के साथ शमशान पहुँचे तब कवरानी बालक को गोद में लिए हुए रूदन करते हुए संत मीठाराम जी से कोध शांत कर क्षमा याचना करने लगी कि मेरा व इस बालक का क्या दोष है, हमें क्षमा करो। आपकी हम पर बहुत कृपा होगी। उस वक्‍त सभी गाँव वालों ने भी संत मीठाराम जी से माफी मांगी तब कहीं संत मीठाराम जी का चढ़ा हुआ क्रोध शांत हुआ। पर संत के क्रोधित श्राप के कारण गढ़ में तीन पीढ़ी तक संतान नही हुई, सब गोद लिए गए थे। तीन पीढ़ी बाद सरगोठ ठाकुर श्रध्येय मोजीदास जी के शरणागत हुए तब बाबा सा के आशीर्वाद से गढ़ में कँवर का जन्म हुआ। उस वक्‍त प्रसन्न होकर सरगोट ठाकुर सा ने मकराना से मार्बल मंगवाकर साग्ल्या धुणी पर मार्बल लगवाया एवं सत्संग व प्रसादी की। यह ईश्वर कृपा एवं संत के आशीर्वाद से हुआ।

इस बात का साक्षी श्री बोदूराम जी प्रजापत तारपुरा वाले हैं।

दिव्य दर्शन

आपकी आत्मा शुद्ध एवं मन निर्मल है एवं श्रध्येय बाबा मोजीदास जी के प्रति सच्ची निष्ठा एवं विश्वास है तो विपत्ति एवं सुख के क्षणां में अंत:स्थल ( अंतर आत्मा ) से स्मरण करने पर आपको बाबा साहब के दर्शन की अनुभूति होगी एवं आपको विपत्ति से छुटकारा मिल जावेगा एवं आपका उचित धर्म निष्ठा से कार्य पूरा होगा।

जैसे निष्ठावान भक्त नन्द किशोर पुत्र श्री भीवाराम जागिड़ निवासी खाखोली जो कि श्रध्येय बाबा साहब के भाई के लड़कें हैं। सन्‌ १९७७ - ७८ में परबतसर जिला नागौर ( राजस्थान ) में विघुत विभाग में कनिष्ट लिपिक पद पर कार्यरत थे।

नन्द किशोर जी एक दिन अचानक अस्वस्थ हो गये। अस्वस्थ होने के कारण खाना दिन प्रतिदिन कम हो गया। प्रतिदिन खून की उल्टियाँ रूक रूक कर होने से अस्वस्थता बढ़ गई। डॉक्टर से इलाज करवाया पर कोई फर्क नहीं पड़ा बीमारी दिनों दिन अधिक बढ़ती गई। मरणासन अवस्था में श्रध्येय बाबा साहब को हृदय से स्मरण कर जीवन रक्षा हेतू विनम्र प्रार्थना की। अगले दिन ब्रहम मुहूर्त में अंतर मन में श्रध्येय बाबा साहब के दर्शन हुये। एवं आदेश दिया कि 'बरसी पर अड़कसर की घुणी पर क्यों नहीं आता है। आया कर ठीक हो जावेगा' अगले दिन से खून की उल्टियाँ धीरे धीरे कम हो गई। गत दिनों जो खून कि उल्टियाँ से शरीर बहुत पतला दुबला हो गया था तथा बहुत कमजोर व अशक्त हो गया तब मकान मालिक श्री नाथुलाल जी दर्जी ने कहा कि नन्द किशोर जी मेरे साथ अजमेर चलो अच्छे डॉक्टर से उपचार करवा देंगे, पर अशक्तता के कारण अजमेर जाने में असमर्थता जताई। अतः श्री नाथुलाल जी ने परबतसर में ही एक वैध को घर लेकर आये उन्होंने नन्द किशोर की जॉच कर निर्बलता को देख कर कहा कि आप तुरन्त अजमेर जाकर उपचार करवाओ। नन्द किशोर जागिड़ के आग्रह पर वैध ने उपचार शुरू किया। आयुर्वेद दवा का मिश्रण कर तीन पुड़ियाँ बनाकर तथ्य व पथ्य बताकर दवा लेने का परामर्श दिया। दवा स लाभ होने पर अगले दिन और दवा का आश्वासन दिया। पहले दिन की तीन खुराक से नन्द किशोर जागिड़ को लाभ हुआ। अत: वैध जी से अगला उपचार लेकर कुछ ही दिनों में श्रध्येय बाबा साहब मोजीदास जी की असीम कृपा एंव वैध जी के सटीक उपचार से पूर्णतया स्वस्थ हो गये।

यह श्रध्येय बाबा साहेब के प्रति सच्ची आस्था एवं विश्वास का सुफल है। जो सभी जिज्ञासुओं कों मिलता रहा एवं मिलता रहेगा। परबतसर सें आबूरोड़ स्थानांतरण होने के पश्चात नवम्बर १९९३ में नन्द किशोर जागिड़ को मलेरिया बुखार हो गया। डॉक्टर का उपचार सही नहीं होने के कारण अस्वस्थता अधिक बढ़ गई। तब डॉक्टर ने कहा पालनपुर या अहमदाबाद ले जाओ। वहाँ के अच्छे डॉक्टर से परामर्श कर उपचार करवाओ। बार बार उल्टियाँ होने लगी इस कारण शरीर दुर्बल हो गया व अधिक सर्दी लगने से दो रजाई उढ़ा दी गई। तथा बार बार उल्टियाँ होने लगी सुबह करीब ४ - ५ बजे के लगभग अशक्त शरीर पर बोझ पड़ने का अनुभव हुआ इससे बचने के लिए करवट लेने का प्रयास किया तो ऐसा लगा कि इतने भार के कारण करवट भी नहीं ले सके।

अंत में शरीर का पूरा जोर लगाते हुए इस असहाय पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए श्रध्येय बाबा साहब को स्मरण किया। तत्काल अनुभव हुआ कि दयालू बाबा साहब मोजी महेश जी को दोनों कृपालु हाथ मेरे सिर पर रखे हों एवं उनके कृपालु चेहरे के दिव्य दर्शन की अनुभूति होते ही भार हल्का हो गया एवं शारीरिक दुर्बलता से राहत मिलने के संकेत महसूस हुए। अगले ही दिन उपचार के लिए इनके सुपुत्र नेमीचंद जागिड़ पालनपुर ले गए वहाँ जाँच करवा कर दवा दी गई ५ दिन के उपचार एवं श्राध्येय बाबा साहब की कृपा से स्वस्थ हो कर आबूरोड़ लौट आए। यह बाबा साहब के प्रति परम निष्ठा एवं विश्वास का सुफल था।

मोटाराम जी देवना को वचन

बाबा साहब अपने प्रभू की भक्ति में मग्न रहते थे। और वैराग्य रुप में ही झोली लेकर गाँव में फेरी लगाते थे तथा लोगों के घर जाकर किसी से पैसे लेते किसी से रोटी लेते। जो झोली में रोटी मिलती वह गाय व कुत्तों को खिला देते तथा रुपये पैसे मिलते वह जूती में रख लेते। इसी प्रकार फेरी लगाते लगाते वे एक दिन तारपुरा के मोटाराम देवना के घर पहुंचे और उनसे कहा यदि एक रुपया देगा तो एक लड़का दूँगा दो रुपया देगा तो दो लड़के दूँगा ऐसा बाबा साहब ने फेरी लगाते दो बार कहा। मोटाराम दोनों गाँवो के मुखिया थे। तो वे मोजी बाबा से ज़िद करने लग गये। तथा अंत में मोटाराम जी ने आठ्‍ठन्‍नी दे दी। साहब के मुख से सत्य वचन निकले मोटाराम तेरे घर मोहन आने वाला था। लेकिन अब मोहनी बाई आयेगी। ऐसा कह कर वे चले गए। समय बीत गया जब उचित समय आया तो मोटाराम जी के यहाँ लड़की का जन्म हुआ, जिसका नाम मोहनी रखा गया। उस लड़की की आवाज़ व चेहरा लड़का जैसा लेकिन संत वचनों के कारण लड़की पैदा हो गई।

इस बात के साक्षी श्री बोदूराम जी कुम्हार तारपुरा निवासी हैं।

बाबा साहब की कृपा से पूरा परिवार सुरक्षित रहा

कुछ वर्षो पहले श्रध्येय बाबा मोजीदास की बरसी पर आने जाने हेतु महेन्द्र जागिड़ ने टेक्सी माउन्ट आबू से अड़कसर वापस माउण्ट आबू आने हेतु किराये पर की, जीप में श्री महेन्द्र जी, बनवारी लाल, खाखोली, झूमर मल जी, पायली, श्रीमती पुष्पा एवं इनके तीनों बच्चे जीप के द्वारा अड़कसर धुणी पर श्रध्येय बाबा साहब की बरसी धूम धाम से मनाकर वापस लौटते वक्त सिरोही के घाटे की मोड़ पर अचानक जीप के सामने से आ रहे टूक जीप से टकराते ही टूक उल्टा गिर पड़ा एवं जीप के अगले दोनों विह्‍ल टूटकर ऊपर नीचे स्टेपनी की तरह हो गये।

इसी दौरान श्रीमती पुष्पा ने कहा गाड़ी ऐसे क्या चलाता है, मेरी नींद उड़ गई। ड्राइवर ने कहा गाड़ी का एक्सीडन्ट हो गया। इसी दौरान श्री बनवारी लाल जी, ड्राईवर और महेन्द्र जी तीनों ने जीप से नीचे उतर कर देखा कि झूमर कम्बल में लिपटा हुआ सड़क के बीच में पड़ा तथा ट्रक उल्टा पड़ा है। ड्राइवर और खलासी भाग रहे थे। इसी समय बनवारी लाल के कारखाने में पूजा में बाबा साहब की तस्वीर नीचे गिर गई। अचानक वहाँ सो रहा भैरू सिंह डर गया। उठ कर लाइट जला कर देखा तो बाबा साहब की तस्वीर नीचे पड़ी थी। भैरू सिंह ने बाबा साहब की तस्वीर उठा कर पूजा स्थल में रखकर अगरबत्ती की। यह घटना रात की १२ बजे की थी। भैरू सिंह पुनः सो गया।

इसके थोड़ी देर बाद फोन आया कि गाड़ी का एक्सीड्न्ट हो गया। हमारे किसी के भी खरोंच तक नही आई। सूचना मिलने पर सिरोही पुलिस घाटे में आई और कहा कि कितने आदमी मरे। महेन्द्र जी ने कहा हमारे किसी को भी खंरोच तक नहीं आई है पुलिस वालों ने कहा यहाँ रोज दुर्घटना होती है एक या दो आदमी रोज मरते हैं यह तो आपके देवता ने ही रक्षा की है। कहाँ से आ रहे हो आप लोग। महेन्द्र जी ने कहा हम बाबा साहब की बरसी पर गए थे वापस माउण्ट आबू जा रहे हैं। उपरोक्त कथन से लगता है कि आपका इस देवता के प्रति पक्का विश्वास है, ये आपकी रक्षा हर जगह करेंगे। पलिस वाले ने इनके बेयान लेकर दुसरी जीप को द्वारा माऊट आबू भेजा गया।

बाबा साहब मोजीदास जी की समाधि

इस प्रकार बाबा साहब ने सैकड़ों परचे दिए व चमत्कार दिखाया। इनकी प्रसिद्धि दूर - दूर तक फैल गई और लोगों की भीड़ बढ़ने लगी तो उन्होंने कहा राम - राम अब चोलो छोड़णों पड़सी। मोजी बाबा ने एक दिन बड़ी सत्संग का आयोजन रखा, जिसमें सभी लोगों को आमंत्रित किया गया। अपने ग्राम खाखोली व तारपुरा से भी गायक ढ़ाढ़ियों के साथ - साथ कुम्हार, आचार्य ब्राह्मण, मेघवाल, नाई, जाट, ब्राह्मण आदि जातियों के प्रमुख लोगों को आमंत्रित किया। उन्होंने हर व्यक्ति से कुशल क्षेम पूछा गाँव की जानकारी ली। बाबा साहब ने अपने एक अनुयायी ( सेवक ) को बता दिया कि में कल चोला छोड़ दूंगा। आप किसी को बताना मत। रातभर सत्संग चलती रही। सुबह ४ बजे आरती का समय हुआ तो बाबा साहब ने कहा आरती करो और स्वयं अपने आश्रम की गुफा में बैठकर ध्यान मग्न ( समाधीस्थ ) हो गए। आरती के बाद लोग बाबा को नमस्कार करने गए तो देखा कि बाबा ने बैठे - बैठे ही शरीर त्याग दिया है। गाँव के लोगों और भक्तों ने गाजा - बाजा के साथ धूम - धाम से जय जयकार के नारे लगाते हुए मोजी महेश की बैकुण्ठी निकाली और पौह सुदी ३ गुरूवार के दिन उनको समाधि दी गई। तब से आज तक प्रति वर्ष पौह सुदी २ का सत्संग होता है और पौह सुदी ३ को समाधि पूजन व भण्रड़ारा बरसी पर होता है।

समाधि के बाद साक्षात दर्शन

स्वामी जी के काका के लड़के हजारी मल जी व ४ - ५ अन्य व्यक्ति निवासी खाखोली अजमेर से डालडा घी लेकर बेचने हेतू गाँव जा रहे थे कि रास्ता भटक गए। उस वक्‍त बाबा साहब को याद किया और बाबा साहब हाजिर होकर उनको मार्ग बताया और हजारीमल जी ने उनसे पूछा कि आप कहाँ जा रहे है तो बाबा ने बताया कि मैं अजमेर में मेरे सेवकों से मिलने जा रहा हूं। हजारीमल जी ने गाँव आकर घर बालों को बाबा साहब का सारा वृतान्त बताया, तो घर वालों ने कहा कि बाबा साहब ने तो दो दिन पहले ही समाधी ले ली है। इस प्रकार अपने परिवार को शरीर छोड़ने के बाद पहला चमत्कार बताया। यह चमत्कार आध्यात्मिक दृष्टिकोण में जीवित समाधि का मूलाधार माना जाता है।

मोजीदास जी महाराज का चमत्कार

श्री श्री १००८ श्री लकड़दास जी महाराज पंजाब के सिकलीगर लौहार थे। प्रथम अबोहर की धूणी से बीकानेर व वहाँ से सांगलिया पधारे। वर्तमान सांगलिया धूणी है वहाँ पर राजपूतों व ब्राह्मणों के शमसान थे। लकड़दास जी ने रात्रि विश्राम शमसान में ही किया। महाराज श्री की लम्बाई काफी थी। सुबह के समय लोग लद्यु शंका करने आदि के लिए निकले तो देखा और आपस में बात की कि आज शमसान में लकड़ का लकड़ ही कौन खड़ा है। जाकर लोगों ने महाराज से पूछा कि महाराज आप का नाम क्या है? महाराज ने कहा कि अभी तुम कह रहे थे वही लकड़दास मेरा नाम है। सांगलिया के ओनाड़ सिंह जी डुँगरिया में गये थे वहाँ मानदास जी महाराज महरोली के उगमसिंह जी के शेखावत राजपुत थे। उनको १८ वर्ष तपस्या करने के उपरान्त सांगत्निया ले आए। अभी पुराना कुआ है उसका नाम बोड़िया कुआ सबका सीर का था, सबने मिल कर मानदास जी के भेंट कर दिया। मानदास जी के चेले मोजीदास जी व लादुदास जी थे।

मोजीदास जी जिनका गृहस्थ नाम हीरालाल था। ये जांगीड़ ( खाती ) परिवार से थे और उनका ग्राम खाखोली तहसील डीडवाना था। बैरी बड़ी के ठाकुर साहब श्री बलदेव सिंह जी के गढ़ के किंवाड़ों का काम मोजीदास जी का ही किया हुआ है। ग्राम फोगड़ी में गढ़ के किंवाड़ उन्होंने ही बनाए व सिरड में ही हीरमच से एक सिंह का चित्र बना दिया। ठाकुर साहब ने पूछा यह क्या बनाया है, तो उन्होने कहा शेर बनाया है जो तुम्हें खायेगा। बैरी गढ़ में काम करते वक्‍त परिवार व कर्मचारियों के लिए बनाया गया पूरा हलवा एकेले मोजीदास जी ही खा गए।

मोजीदास जी महाराज विक्रम संबत २००१ की साल में सांगलिया से अड़कसर पधारे। अभी जहाँ अड़कसर में मोजीदास जी धूणी है वहाँ बगीची में एक खेजड़ी का पेड़ है, उसके नीचे गिंवारिया रोटी पका रहा था उससे महाराज ने कहा दादा आज से ३०० वर्ष पहले गुरू महाराज ने तपस्या यहाँ पर ही की थी। अब तू चल हम यहाँ सम्भाल लेंगे। ठाकुर साहब नारायण सिंह जी सरगोठ के पुत्र नहीं थे। इस लिए मोजीदास जी महाराज को निमंत्रण देकर के सरगोठ के गढ़ में बुलवाया गया। तथा उनका स्वागत किया गया और चुन्दड़ी का साफा बन्धवाया गया तो मोजीदास जी महाराज ने कहा राम राम चुन्दड़ी ओढ़ने वाली बाई होगी फिर पुत्र रत्न होगा। ५२ वर्ष की उम्र में पुत्री पैदा हुई। फिर पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। मोजीदास जी सांगलिया छोड़ने के बाद वापस सांगलिया नहीं गए। विक्रम संवत २०१० पौष सुदि ३ के दिन महाराज ने समाधि ली। ठाकुर साहब सरगोठ श्री नारायण सिंह जी ने सांगलिया धूणी पर भी छत्री बनवाई। नारायण सिंह जी ने बारह घोड़ों व ऊँटों सहित पूरे ठीकाणों का काफिला लेकर बाबा श्री मोजीदास जी के धूणा पर अड़कसर पधारे सवा पांचमणी सुबामणी करी, पक क्विन्टल गुड़ गाँव में बँटवाया। गोपाल जी राव को कहा दादा शंकर के छत्र बनवाना है तो रावजी ने कहा बाबोसा चाँदी कठांसु आसी। बाबा ने कहा आपणां पचपीरां के खेजड़ा नीचे है ले आवो। गोपाल जी राव खेजड़े के पेड़ नीचे गए और देखा कुलड़ी ( छोटी हाँड़ी ) में चाँदी मिली, उस चाँदी का छत्र बनवाकर शिव मंदिर में चढ़वाया। अड़कसर गाँव में दिन के १२ बजे कहीं पर आग लग जाती थी। धूणी पर झूंपे में बैठे बाबो सा ने धूणी से भभूति लेकर आग की तरफ फैंका और कहा मातेश्वरी कृपा करके शान्त हो जावो, फिर लगातार लगने वाली आग नही लगी। यह वृतान्त लिखकर देने वाले अमरसिंह शेखावत सेना में थे।

बाबा का डाबड़ा गाँव में जाणा, आसन लगाना और धनकोली ठाकुर साहब तेजसिंह जी का आना बाबा को कहना कि बाबा कँवर साहब बीमार है। बाबा ने कहा भभूति लगावो। ठाकुर साहब ने कहा आ राख तो म्हाके गढ़ में घणी ही पड़ी है, इको कांई करा बाबा के मुख से निकली आवाज राम - राम राख ही हुगी और कवर साहब की मृत्यु हो गई। डीडवाणा में टी.टी. ने गाड़ी से नीचे उतार दिया, उनके पास टिकट नही थी। बाबा ने कहा राम - राम थारी भूतणी ने लेजा इंजन तो म्हांको है गाड़ी खड़ी रही, आगे नहीं चली। टी.टी. पगां पड़गो, बाबा को बिठाया तो गादी चली। बाबा का परचां को क्या वर्णन करूं, करूं जात्‍ता ही थोड़ा है। अड़कसर गाँव में किसी किस्म का रोग हो जाने पर एक नारेल प्रसाद बोल दो तुरन्त फायद होता है। सामरथ है, बस्ती के प्रसाद का फर्ज बाबा ही अदा कर देता है। बगीची का कुआ खुदवाया, पानी आ गया, बाबा ने जाकर देखा राम - राम ओ तो बाड़ो चोड़ो हो गयो, नीचे से एक नाल ऊपर की तरफ ले आवो, आज दुनिया में ऐसा कोई धूणा नहीं जिस कआ के डबल ( दो ) नाल है। कुआ का बचा हुआ पैसा कए के ही लगा दिया।

यह तथ्य श्री ठाकुर साहब अमर सिंह जी शेखावत भूतपूर्व सैनिक अड़कसर ने बताया।

भारत - पाक युद्ध में बाबा मोजी का चमत्कार

वैसे तो अनेकों चमत्कार मोजी बाबा ने भक्तों को जीवन में दिये है। किन्तु मातृ - भूमि पर अपनी जान लुटाने वाले वीर भक्तों की जान बचाकर राष्टू प्रेम की अनुठी मिसाल कायम की। भारत की सेना का वीर यौद्धा अमरसिंह शेखावत है जो कि अड़कसर निवासी है। यह अपने जीवन की दास्तान याद करते हुऐ कहते है कि - मे मोजी बाबा का अनन्य भक्त रहा हूँ। बाबा की तपो धूणी बगीची की भभूति मेरा अमूल्य प्रसाद रहा है। राष्ट्रीय प्रेम ने मुझे सेना में भर्ती होने हेतु प्रेरणा दी। बाबा के आशीर्वाद से भारतीय सेना में सैनिक पद पर सेवा करने का मुझे अवसर मिला। एक दिन की बात है कि पाकिस्तान ने भारत सीमा पर आक्रमण कर दिया। ५ सितम्बर १९६५ को हिन्द - पाक भीषण युद्ध शुरू हो गया। हमारा हैड क्वार्टर पाक फौज के पैटर्न टेंक से घिर गया। हमारी सेना एवं शस्त्र बारूद इत्यादि दुश्मन की सेना से बैहद कम मात्रा में थे। हम पूर्णतयां दुश्मन की विशाल सेना के टेंक से धिर गये। सैना के हर एक मौर्चे में दो सैनिक रहा करते थे। मैने अपने म्रोर्चे में अंगुली से बाबा मोजी साहेब को याद करते हुए लिखा - बाबा मोजि बचाओ…। मौचे में ही मुझे सहसा नींद की झपकी आई और मैने देखा की बाबा जो काली कम्बल को ओढ़ते थे। वह उन्होंने मुझे ओढ़ा दी। और मुझे जगाते हुऐ कहा - राम - राम अमरसिंह। सोने का समय नहीं है - जागो। यह कहकर अन्तर्ध्यान हो गये। मैं समझ गया बाबा साहेब आ गये है और सीमा पर रषा कर रहे है। मैने अपने आस पास सभी मौचें धारी सैनिकों को सूचित किया की वह भी अपने मौचें पर बाबा मोजी बचाओ लिखकर मौ्चे मे ही रहे और बाबा साहेब को याद करे। वे रक्षा करेंगे। जिन - जिन मौर्चा धारी सैनिक टुकड़ी ने उक्त कृत्य किया वह सभी जान से बच कर सुरक्षित रहे। जिन्होंने यह नही किया। और जान बचाने की कोशिश की वह नौ सैनिक मौचें से निकले और मारे गये। पाकिस्तानी टेंक ने हर मौचें पर जबरदस्त गोला बारी की। लेकिन मोजी बाबा की असीम कृपा से मौचें एवं मौचें में रह रहे आस्था वान सैनिक पूर्णतः बच गये और अपनी सीमा को सुरक्षित रखने में कामयाब हुए। इस घटना ने ना कवल भक्त अमर सिंह शेखावत को ही रोमांचित किया, वरण्‌ अनेकों मौचों धारी भारतीय सैनिकों को आस्थावान बनाकर आश्चर्य चकित कर दिया। वे सभी जवान आज भी मोजी बाबा को याद कर श्रद्धा से शीश झुकाते है।

वीर योद्धा अमरसिंह का बाबा साहेब के प्रति सच्चे दिल से लग्न व पूर्ण आस्था के कारण १०५० सैनिक बच गये और सिर्फ ९ सैनिक मारे गाये। सचमुच बाबा मोजि महेश अपने भक्तों पर अनुठी कुपा हर क्षैत्र में बरसाते रहते हैं। यह घटना राष्ट्रीय प्रेम के प्रति अपने दायित्वों को निभाने की ओर प्रेरित करता है। यह दरसाव ०९ सितम्बर १९६५ ई. का है जो सत्य घटना का प्रमाण है।

स्वर्ग के दर्शन

नागौर जिले के लाडनू तहसील में एक बड़ा सा गांव मीठड़ी हैं। जहाँ बाबा साहब मोजी महेश जी का पवित्र धूणा है। कहा जाता है कि बाबा साहेब कभी कभी जब मीठड़ी गांव जाते तो १० - १५ दिवस तक यहाँ विश्राम करते और भक्तिमय सत्संग में मगन रहते। इस तपोधाम में हर जाति वर्ग समुदाय के लोग आते और बाबा साहेब के सानिध्य में सत्संग का लाभ उठाते।

ऐसे सत्संगी भक्तों में एक भक्त था रामाकिशन जाँगिड़। रामकिशन जी सिद्धान्तवादी ईमानदार, निष्काम, कर्मसेवी, विद्वान और परमभक्त थे। अकसर बाबा साहेब के सत्संग दरबार में निष्काम भाव से सेवा देकर भक्ति किया करते। एक दिन को बात है रामकिशन जी ने बाबा मोजीदास जी महाराज से निवेदन किया कि कृपा करके आप स्वर्ग मुझको भी दिखा दो। बाबा साहेब ने भक्तिमय नम्र प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और कहा की समय आने पर स्वर्ग के दर्शन जरूर करवायेंगे। कुछ समय बीत जाने के बाद एक दिन, रामाकिशन जी को हल्का सा बुखार आ गया। और वह कम्बल ओढ़कर सो गये। उसी समय बाबा मोजी महेश अपने सफेद रंग के हवाई जहाज में बैठ कर आये। इस हवाई जहाज पर ध्वज लहरा रहा था। बाबा जी ने रामाकिशन जी को हवाई जहाज में बैठाया और स्वर्ग लोक ले गये। हवाई जहाज से नीचे उतर कर रामाकिशन जी ने साक्षात स्वर्ग के दर्शन किये। इस दिव्य लोक में सभी देवताओ का अनुपम दरबार लगा हुआ था। जिसमें भगवान, सदाशिव, पार्वती, राम - सीता, लक्ष्मण, हनुमान दरबार, कष्ण - राधिका, गणेश आदि भगवान सभा में बैठे मुस्करा रहे थे। रामाकिशन जी सब कुछ देखकर दंग रह गये। दिव्य लोक के दरवाजे पर ही बाबा साहेब के पैर पकड़ लिये और बाबा साहेब से शीथ्र वापस घर भेजो का आग्रह किया। बाबा साहेब ने कहाँ रामाकिशन यहाँ ही रूक जा। रामाकिशन ने पुनः ३ बार कहा मुझे घर वापस भेजो। बाबा। मुझे घर जाना है। बाबा साहब ने तीनो बार कहा। यहाँ स्वर्ग में ही ठेहर जा मान जा रामाकिशन…। मगर रामाकिशन अपनी जिद्ध पर अड़ा रहा। और पैर नही छोड़ा। अन्त में बाबा साहेब तो वही ठेहर गयें। और भक्त रामकिशन को उसकी जिद्ध के कारण उसी हवाई जहाज में बैठा कर वापस घर भेज दिया। आखिर चारपाई पर वह धड़ाम से गिरे और सपनो की भाँति नींद खुल गई। फिर बहुत पछताने लगे। रामाकिशन जी स्वयं करीब १९९० - ९१ के आस पास बाबा साहेब की स्वर्ग दर्शन की अलोकिक घटना को नन्द किशोर जाँगिड़ को सुनाया। यह सच्ची घटना बाबा साहेब मोजीदास जी के समाधि लेने की बाद की है।

गंगा मायी की समाधि

घसीजी बिजानिया ग्राम मंगरासी के पास, हनुमानपुरा ग्राम का निवासी था। वह बाबा साहेब का पका भक्त था। उसके चेहरे पर एक मेध थी। इसलिए सभी लोग मेधवाले बाबा के नाम से पुकारते थे। घसीजी के पास एक हष्टपुष्ट गाय थी जब बाबा साहेब उसके गांव जाते तो उसी गाय का दूध पीते थे। महिने के १५ दिन बाद गाव से बैल गांडी लेकर बगीची अड़कसर में आता और बाबा साहेब के दर्शन कर प्रणाम करता। फिर अपनी उसी गाय का दूध बाबा साहेब को पिला देता। अपने सेवा कर्म वह बैलो से चडस के माध्यम से कुए से पानी निकाल कर जानवरों की ओरू ( होद ) में भरकर पुन: शाम होते होते अपने गांव लौट जाता हैं। एक दिन बाबा साहेब स्वयं सुबह सुबह उसके गांव आ गये। और घसीजी को कहाँ आप उसी गाय का दूध लेकर आवो। हम ताजा ताजा दूध पिएंगे। घसीजी ने कहाँ - बाबा साहेब वह गाय तो कल शाम को स्वर्ग सिधार गई। अब दूध कहा से लाऊं। बाबा साहेब ने कहा वह गाय तो बाड़े में खड़ी खड़ी चारा चर रही है। बाल्‍टी लेकर जल्दी जावो और दूध निकालकर ले आवो। यह सुनकर घसीजी के घर वाली बाल्टी लेकर बाड़े में गई तो गाय वास्तव में चारा चर रही थी। दूध निकाला और ताजा दूध बाबा साहेब को पिलाया। बाबा साहेब दूध पीकर खुश होकर चले गये।

घसीजी एवं घसीजी के परिवार वालो ने मंत्रणा की मरी हुई गाय का बाबा साहेब ने जिन्दा कर दिया। अत: इस गाय को अड़कसर धूणा जाकर बाबा साहेब को सम्भला देना चाहिऐ। फिर क्या था घसीजी और घसीजी के परिवार वालो ने उसे गाय को सम्भला दिया। उसी गाय को बाबा साहेब ने नाम दिया गंगा मैया। अक्सर मोजी बाबा उसे गंगा मैया के नाम से पुकारते थे। उस गाय के मरणाोपरान्त उस गाय को अड़कसर धूणा स्थल पर समाधी दे दी गई। आज भी धूणा पर गंगा मैया के नाम से समाधी मौजुद हैं।

रामपुरा ( लौसल ) दशोठन की अद्‍भूत कहानी

विक्रम संवत २००७ में ग्राम रामपुरा में कुम्भाराम पुत्र धन्‍ना राम जी रनवा अपने पुत्र चन्द्राराम के जन्म पर दशोठन का उत्सव मना रहे थे। सभी मेहमान घर पाण्डाल में आ चुके थें। उनके लिए खाना बनाया जा रहा था। कड़ाव में खीर बन रही थी। खीर में चावल कड़ाव के पेन्टे में जल रहे थे। उसी दरम्यान पूर्ण सिद्धोसिद्ध महाराज मोजीदास जी वहाँ से गुजर रहे थे। उन्हांन॑ पास ही खेत में मरे हुऐ जानवर की टांग उठाकर खीर को कड़ाव में हिलाने लगे। सब लोगों ने देखा तो कहा अरे मोड़ा ने तो सारी खीर खराब कर दी। अब क्या करे। बाबा साहब ने खीर हिलाते - हिलाते कहाँ - तुम्हारी खीर जलकर खराब हो रही थी। इसलिए खीर हिला रहा हू। तभी एक बुर्जुग व्यक्ति ने बाबा साहब के पास जाकर कहा - बाबा साहब आपने खीर खराब कर दी…।

तब बाबा साहब ने उस हडडी को खीर से बाहर निकालते हुऐ कहा - अरे चौधरी यह तो जानवर की हडडी नही अपितु लकड़ी का चाटू ( चम्मचा ) हैं। सब लोग यह सब देखकर दंग रह गये और बाबा साहब के पास जाकर चरणो में गिर पड़े एवं माफी मांगने लगे। बाबा साहेब रूके नही लौसल की तरफ चले गये। यह कथा भीवराज जी सुजाराम जी जाँगिड़ और बाबा जी धन्नाराम रणवा बड़े चाव से सुनाते थे।

कोबरा नाग से जान बचाना

लेखक नन्द किशोर पुत्र श्री भीवाराम जांगिड़ स्वयं बताते है कि - मैं खाखाोली ग्राम में पाचवीं कक्षा में पढता था। तब मास्टर जी ने खाली कॉपीयाँ मगवाई। कॉपीयाँ खाखोली ग्राम में नही मिली। तब मौलासर ग्राम जाना पड़ा। जहाँ से पीतल की दो आनी के हिसाब से आठ आने में चार खाली कॉपीयाँ खरीदी और खेत जो तेलीयां कुआ ढाणी को पास में था। वहाँ मुख्य रास्ता छोड़कर अपने खेत की तरफ चल पड़ा। खेत में गोड़ा सुदा बेकरा ( घास ) में से होकर ज्यों ही में गुजरा तो अचानक मेरा पैर घास पर पड़ा और घास हिला। घास हिलने से एक ५ - ६ फीट लम्बा जहरीला कोबरा नाग गस्से में लहराता हुआ ४ से ५ फीट ऊंचा हवा में मेरी और उछला तो में घबरा कर हक्का - बकका रह गया। तभी भगवा चोला पहने एक सन्त ने शीघ्र सामने से आकर अपना डंडा हिलाकर नागदेवता को दूर कर दिया। और क्षणभर में दोनो ही गायब हो गये। मैने हाथ जोड़कर प्रभु से प्रार्थना कि और पुन: खेत का मार्ग छोड़कर मुख्य रास्ते के जरीये सीधा खाखाोली ग्राम आ गया। सारी घटना अपनी दादी जी को सुनाया। मेरी दादीजी ने बताया की तुझे तो मोजी बाबा ने ही बचाया हैं। उसके बाद मे कभी बिना रास्ते खेत नहीं गया। ऐसा बचन दादी को दिया। ऐसे अनगिनत चमत्कार बाबा ने सहज ही दिया।

मनोकामना पूर्ण की कथा

खाखोली ग्राम निवासी - मदन लाल जॉँगिड़ के घर पर पौता ओम प्रकाश का जन्म हुआ। ओम प्रकाश के जन्म उत्सव पर ननिहाल पक्ष के ग्राम खेड़ी वाले गणपत जी, घासी जी, सांवर मल जी, मदन लाल जी परिवार सहित ओम प्रकाश के जन्म पर दशोटन लेकर आये। दशोटन जन्मोत्सव का कार्य पूर्ण करके पुन: खेडी गाँव जा रहे थें। किचक से खेड़ी ग्राम के लिऐ बस पकड़नी थी। ऊंट गांडी से चारो भाई परिवार सहित किचक ग्राम में पहुँचते ही बस सामने देखते - देखते ही निकल गई। बस को रूकवाने का बहुत प्रयास किया। लेकिन बस रूकी नहीं। गणपत जी ने मोजी बाबा का ध्यान करके अर्ज किया कि बाबा साहेब बस निकल गई है अगर ये बस नहीं रूकी तो कल दोपहर को यह बस आयेगी। और दिवस खराब हो जायेगा। मदद करे। देखते ही देखते सहज चमत्कार हों गया और वह बस करीब आधा किलोमीटर दूरी पर जाकर रूक गई। कारण पता चला की बस का फेन बेल्ट टूट गया। गणपत जी परिवार सहित सभी मौके पर पहुंचे और बस पकड़ी। गणपत चूको मेकेनिक भी थे। उन्होंने फेन बेल्ट बदला और बस खेडी ग्राम के लिए रवाना हुईं। गणपत जी सहित सभी ने मोजी महेश बाबा का धन्यवाद अर्पित किया। और इसी तरह सचमूच मोजी बाबा ने मनोकामना पूर्ण कर भक्तों व सन्तों के जीवन मे राहत पहुचाई।