भारत देश की पावन धरा पर वैसे तो कई सन्त महात्मा महर्षि विद्वान, तपोनिष्ठ सिद्धि महापुरूष अवतरित हुए है जिन्होंने अपने सत्कर्मों के माध्यम से मानस पटल को परिवर्तित कर जीवन जीने का अनोखा जीवन दर्शन दिया। अपने अतुलनीय ज्ञान, कर्म और वैराग्य के माध्यम से भक्ति का जन जीवन में संचरित कर आत्म बोध कराके सत्वतत्व का दर्शन कराया। ऐसे ही तपोनिष्ठ, वचनसिद्ध चमत्कारिक शक्तियों के धनी रहे श्री श्री १००८ श्री मोजी दास जी महाराज। दीन दयाल कृपानिष्ठ श्री मोजी बाबा का जन्म ग्राम खाखोली तहसील डीडवाना जिला नागौर में जाँगिड़ परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम श्री तिलोक जी जाँगिड़ एवं माता श्रीमती दलु देवी थी। इनके पिता धर्म प्रेमी, कर्मनिष्ठ, व्यक्तित्व के धनी रहे एवं माता पति परायन सुशीला नारी रही है। इनकी माता सरदारपुरा खुर्द के निवासी गंगा राम जी रोसांवा जॉगिड़ की पुत्री थी। श्री मोजी बाबा जी के दो भाई व एक बहिन क्रमश: श्री किस्तुर मल जी, श्री मोहन लाल जी किन्जा व श्रीमती सोनी देवी थी। बाबा साहेब का जन्म भादवा ( शुक्ल पक्ष ) चान्दनी रात मे बारस-तेरस तिथि मध्य ब्रह्म मुहुर्त सुबह ४:०५ बजे विक्रम संवत १९५९ में तिलोक जी जाँगिड़ परिवार में दलुदेवी की कोख से हुआ। इनका नाम हीरा लाल जाँगिड़ रखा गया। नाम से हीरा लाल हीरे की भांति बचपन से ही चमकने एवं दमकने लगे। बचपन से ही गुणों की खान रहे। स्वामी जी को संस्कार मूलतः उनके माता पिता से प्राप्त हुए। अति मेधावी हीरालाल अपने पिता के फर्नीचर व्यवसाय में उनका हाथ बंटाते रहते थे। किन्तु बचपन से ही हरि भजन कीर्तन की भावना हिलोरे लेती रहती थी। आखिरकार अन्त:करण ने अपना करिश्मा दिखाया और हीरालाल के हृदय से वैराग्य रूप भक्ति अंकुरित हो प्रस्फुटित होने लगी। इनका विवाह श्रीमती लक्ष्मी देवी सुपुत्री श्री कुशाल जी जॉगिड़ निवासी दौलतपुरा ( डीडबाना ) के साथ हुआ अर इनके गृहस्थ आश्रम के आंगन में दो पुत्र रत्न श्री मोटा राम जी और श्री मदन लाल जी जाँगिड़ एवं दो पुत्री केसर बाई एवं ग्यारसी बाई का जन्म हुआ।
एक कहावत हैं कि योगी का योग भ्रस्ट हो सकता है लेकिन नष्ट नहीं होता है। यह कहावत संत शिरोमणि मोजी महेश जी पर खरी उतरती है। मोजी बाबा उर्फ हीरालाल जी के मामा जवान जी सरदारपुरा वाले भुसावल ( महाराष्ट्र ) में उन्हे लेकर गये। वे वहां फर्नीचर का कार्य किया करते थे। अत: हीरालाल उर्फ मोजी बाबा भी फर्नीचर के व्यवसाय में कार्य करने लगे। फर्नीचर व्यवसाय का कारखाने का मालिक बहुत दुःखी रहता था। क्यांकि उसके कोई सन्तान नहीं थी। जो व्यवसाय को देखरेख कर वंश को आगे बढ़ा सके। एक दिन हीरालाल जी ने दु:खी सेठ को देख कर पूछा कि सेठजी आप इतने परेशान क्यों हो। सेठ ने कहा - हीरालालजी मेरे सन्तान सुख नहीं हैं। इस माया का आगे मालिक कौन बनेगा। कौन मेरी वंशावली को आगे बढ़ायेगा। इसी सोच में दुखी रहता हूँ। हीरालालजी ने सेठ से दो खोपरे की बाटकी व अगर बत्ती मंगवाई। फिर खोपरे की बाटकी का हवन कर अगरबत्ती लगवाई और हवन की भभुती सेठ को देकर कहा। जाओ सेठ अपनी धर्म पत्नी को यह भभुती पानी में घोलकर पिला देना। भोले बाबा तुझे लड़का दे देंगे। हवन की भभुती एवं हीरालालजी के वचन सिद्धानुसार अद्भुत चमत्कार हो गया और सेठानी के गर्भ ठहर गया एवं नो महीने बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। सेठजी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने हीरालाल जी को कहा जो चाहे ले लो रूपया, कपड़ा, प्लॉट इत्यादि। हीरालाल जी ने कहा - कल सुबह बताऊँगा। बस भोले बाबा को कृपा से भक्ति प्रस्फूटित होने लगी। हीरालाल जी के अन्त:करण से वैराग्य उत्पन्न हो गया। वे मध्य रात्रि को भूसावल ( महाराष्ट्र ) को छोड़कर खाखोली गांव पहुँच गये। फर्नीचर बनाने के औजार,कपड़े एवं सभी समान वहीं छोड़कर आ गये। और शान्त होकर मौन धारण कर लिया। कुछ दिन बाद पुन: भक्तिमय वैराग्य उत्पन्न हुआ और भाव विभोर होकर नाचने गानें लगे। भक्ति उनके रोम - रोम से निखरित होकर जगत में दमकने लगी। कभी मठ पर कभी गलियारों में, कभी खेतों में, कभी मन्दिर में नाचने एवं गाने लगे। एक दिन स्वयं शंकर भगवान का स्वरूप धारण कर पंडित छोटू राम के लड़के गिरधारी को जो १ साल का था। अपनी गोद में लेकर खाखोली मठ पर चढ़कर मुडेर पर नाचने लगे। गिरधारी की दादी घबरा गई और हीरालाल से कहा - हीरालाल गिरधारी भूखो है मने दे दे ( इन्हें दूध पिलासू ) मोजी बाबा साहेब कहने लगें - म्हारी मावड़ी ओ तो हनुमान है बजरंग बली है। इको कांई को नी बिगड़े। फिर बाबा साहब ने उसकी दादी को उसे दे दिया। गिरधारी कालान्तर में बड़ा होकर प्रख्यात विद्वान पंणिड्त बना और स्वयं श्री बालाजी का भाव भी उन्हें आता था। भक्ति के इसी सौपान में वे छतरियों में शंकर भगवान के मन्दिर से मुकुट पहनकर कुए के भूंण पर चढकर नाचते और भगवान का गुणगान करते तो कभी कृष्ण रूप धारण करके मधुर बाँसुरी बजाते। हीरालाल के भक्ति रूपी चमत्कार दिन प्रतिदिन बढ़ता चला गया। भगवान के विभिन्न रूपों के दर्शन एवं मधुर ज्ञान को सुन कर जन-जन श्रोता मंत्र मुग्ध हो भक्ति रस में डुब जाते और हीरालाल को भक्त स्वरूप की प्रशंसा करते।
एक दिन गाँव के किसी दुष्ट व्यक्ति ने उन्हें अपशब्द बोल कर उनका अपमान किया। तब हीरालाल मस्ताना मोजि ने गुस्से में ग्राम खाखोली को जलाने की धमकी देदी। वैराग्य धुन में घुमने लगे। तब इस व्यक्ति सहित गांव वालो ने इनके चाचा तनसुख जी को कहा -
हीरालाल गांव को जलायेगा। इसलिए इनको बान्ध दो। तनसुख जी तथा भाई किस्तुर मल जी दोनों ने मिलकर हीरालाल जी को पकड़ कर बाडे में नीम के पेड़ के नीचे ऊंट को बाधने वाली लोहे की बेल से बान्धकर ताला लगा दिया। महिना भर वहाँ बन्धे रहे। उन्हे खाना पकड़ा देते एवं दैनिक कार्य से निवृत होने के लिए लोहे की बेल का बंधन खोल देते और पुन: उन्हे बाँध देते। के वक्त भी मोजी बाबा ( हीरालाल ) वहाँ बैठे मिटटी का मन्दिर बनाते और पास ही भजन करने के लिए गुफा बनाकर उसमे बैठ जाते और भजन करते रहते। एक दिन चाचा तनसुख जी व भाई किस्तुर जी ने हीरालाल के पास में जाकर कहा - हीरालाल हम तुम्हें अब बेल बन्धन से मुक्त कर देते है। लेकिन गांव वाला को तंग मत करना। हिरालाल मोजी बाबा जी ने कहा - काका मैं तो थाकों कायदो राख्यो है वरना भगवान की इतनी कृपा है पलक झपकते ही जेल के ताले भी खुल जाते है। तब लोहे की बेल को क्या हैसियत है। यह सुनकर हीरालाल को बंधन से मुक्त कर दिया।
एक दिन की बात है पूनम की रात्रि को करकेड़ी ग्राम में सांगलिया निवासी संत शिरोमणी सन्यासी मानदास जी महाराज के पावन सानिध्य में भजन कीर्तन का भव्य कार्यकम हो रहा था। श्री मानदास जी महाराज आसन पर विराजमान होकर सत्सग कर रहे थे। रात्रि करीब ११ बजे हीरालाल ( मोजी बाबा ) वहाँ पहुँचकर मानदासजी को नमन कर आसन के पास ही बैठ गये और कुछदेर बाद उन्होंने महाराज श्री से नम्र निवेदन किया मेरे को आप अपनी शरण में ले। हीरालाल जी के आग्रह पर मानदास जी महाराज ने उन्हें निहारा और कुछ सोचते हुए कहा की आप सर्वशक्ति पूर्ण है आपके पास वो शक्ति है जो मे सहन नहीं कर सकता। अत: तुम कल फोगड़ी जाकर मेरे गुरू के स्थान पर पत्थर को शिला रखी है। उस पर विधि विधान से संतों की रीति रिवाज अनुसार बैठ कर स्नानादि पवित्र होकर शीघ्र सांगत्निया आ जाना। श्री मान दास जी महाराज के निर्देशानुसार हीरालाल जी ने ऐसा ही किया। फोगड़ी पहुँचकर सिर मुंडवाया एवं विधि विधान से शिला पर बैठते ही दिव्य शक्ति ने अदभूत चमत्कार किया और उस दिव्य शक्ति के प्रभाव से वह ५ फीट दूर जा गिरे। फिर पुन: अपनी निर्मल संचित भक्ति द्वारा दिव्य शिला को विनम्र प्रणाम व पुजन कर उसी शिला पर बैठे और स्नान किया। नये कपड़े पहनकर गाजे बाजे के साथ खाखोली ग्राम होते हुऐ सांगलिया धूणी पर पहुँच गये। श्री सन्त शिरोमणी मान दास जी महाराज के द्वारा सन्यास वृत की दीक्षा लेकर जनहित में भगवां वेश धारण कर भक्ति मार्ग की और अग्रसर हो गये। पूरे देश में तीर्थाटन कर भक्ति का संचार जन-जन में संचरित किया और लोक कल्याण कार्य करते हुए अपनी मानवीय जीवन को निस्वार्थ भाव से सन्मार्ग पर लगा कर समर्पित हो गये।
मन मोजी होकर भजन रत रहने से वह भक्तो में हीरालाल से मोजी दास बाबा और फिर मोजी बाबा के नाम से जगत में विख्यात हो गये। भक्तों के मुखारविन्द से ज्ञात होता है कि यह साक्षात शिवांकर स्वरूप थे। इनके हृदय स्वरूप में साक्षात शिवदर्शन की अद्भुत अनुभूती होती रही हैं। अत: भक्त इन्हें बाबा मोजी महेश के नाम से पुकारा करते है। बाबा मोजी महेश ने जन कल्याण, अनेकों उपदेश, भजन, सोरठे, वचनावली और गीत इत्यादि के माध्यम से सतसंग कर मुक्ति का निर्मल ओर सरल मार्ग भक्तों को बताया। प्रभु नाम सुमरिन, परहित सेवा, निःस्वार्थ कर्म, योग और आसन इत्यादी दिव्य संस्कार भक्तों के मानस पटल पर अंकित कर दिया। सहजा भक्ति को स्वोपरि मानने वालों सन्तों के हितार्थ मोक्ष के द्वार सदैव के लिए उन्होने खोल दिया। इन्होंने देश के विभिन्न भागों में धुना चेतन कर अघोर तपो साधना की एवं भक्तों का सधोपचार कर उद्धार किया। नेपाल एवं देश विदेशों में भी तपोसाधना कर जनोद्धार किया। विश्व के कोने-कोने में भक्त आपकी महिमा का सुमरिन तपो साधना करते है। एवं जनहितार्थ सेवायें देकर अपने जीवन को सफल बनाते है। आज भी इनके अनेकों शिष्य सन्त एवं भक्त संसार में बताये गये इनके मार्गो का अनुसरण कर निस्वार्थ भाव से सेवा कार्य में सेवारत रहते है।