॥ जय साहेब की ॥

कथा

कथा मोजी दास जी महाराज

प्रथम गुरू को नमन करूं, धरूं हिय में ध्यान।
लाज रखो दास की, कथा करू बखान॥
सब संतों से विनती, मैं चरणों का दास।
क्रोड़ गुन्हां माफ करो, हृदय करों प्रकाश॥
जिला नागौर मांयने, खाखोली एक गांव।
भक्त एक अवतार लियो, मोजी दास जी नांव॥
पिता तिलोक राम जी, दलुबाई है मात।
मोजी महेश जन्मिया, जांरी जांगिड़ जात॥
भादवा सुदी चांदणी, १२, १३ री रात।
इण घर हीरा आविया, उगतड़े प्रभात॥

हेली म्हारी आयोड़ा संतारा ( भजन )

म्हारे मोजी दास बाबो सा, घर आविया जी।
ज्यांरी चहुं दिश फेली वास॥
धन्य दलुबाई मात ने जी।
जहां घर जन्म लियो एक दास॥
विक्रम संवत्‌ १९५९ आस-पास में जी।

तिलोक जी घर भयो प्रकाश॥
महाराष्ट्र में सेठ दुखी, पूछी आपने बात।
सांची बात बताय दो, क्यों आंसु पड़े दिन-रात॥

तर्ज - कुचामणी

लाल म्हारे घर में नहीं गुरू देव।
आपने कांई बताऊं जी॥
मैं हूं एक पुत्र को प्यासो, नहीं दियो कोई मोय दिलासो।
सेठ पर दया करी गुरू देव॥
आपने हवन कियो भभूति पाई, सेठाणी घणी हर्षाई।
मोजी प्रसन्न भया महेश॥
अन्न धन्न की कमी नहीं कोई, मांगो सो देवूं मैं तोहि।
माया सब छोड़ चल्या गुरू देव॥

दोहा

भुसावल जब छोड़ को, गुरू चल्या घर आज।
प्रसन्न भये भोले शिव शंकर, मोजी महेश बणिया महाराज॥
गांव खाखोली बीच में नाच रहा गुरू देव।
भोले शिव रो रूप कियो, बम बम बोले जय॥

मोरध्वज

नाच रियो गुरू देव, गजब री लीला कोनी।
बण गया कृष्ण मुरारी, बांसुरी हाथा लीनी॥
भोले शिवरो भेख धरया, जब मोजी महेश महाराज।
चहुं दिश में चर्चा हुई मोजी बजादे साज॥
भक्त री महिमा भारी।
सुणो सभी नर नार प्रभु री महिमा भारी जी॥

गुरू मिलन

एक समय री बारता सुणो सभी दे ध्यान।
गांव करकेड़ी जाय ने मोजी बढ़ायो मान॥
सत्संगत में आविया सांगलिया महाराज।
नमन करूं गुरू देव को, मानदास जी आज॥

हाथ ढाल तलवार

मैं आयो शरण गुरू देव, लाज रखो म्हारी, लाज रखो म्हारी।
मैं बणुं चरण रो दास, शरण में थारी॥
गुरू मानदास कियो ध्यान, मोजी मन भायो।
पकड़ मोजी रो हाथ, भाई बनायो॥
गांव फोगड़ी जाय, गुरू गत पाई।
माथो लियो मुण्ड़ाय, चरण लपटाई॥

दोहा

संत सभी भेला किया, मानदास जी महाराज।
शक्ति शीला पर बेठिया, मोजी रो सरियों काज॥
दीक्षा ली मोजी दास जी, बाजे शांति राज।
ग्राम सांगलिया धूणी पे, पहुंच गये महाराज॥

परचा

विक्रम संवत् १९०२ में गये, अड़कसर गांव।
धूणी धरी नवरात्रा, सांगलपति धर नांव॥

तर्ज - मोरध्वज

दीन दुखी जो लोग, धूणी अड़कसर आवे।
परचा पल मांहि पाय, परिक्रमा आय लगावे॥
मोजी दास जी महाराज की, महिमा अपरम्पार।
दुखियों ने सुखिया करे, होवे जै जै कार॥
प्रभुरी महिमा भारी

( खाखोली मगन ढ़ाढ़ी को परचा )

मगन ढ़ाढ़ी मन सोच ने, पहुँचा अड़कसर आय
मातम छायो घर म्हारे, दाता कीज्यो सहाय॥
दोय साल में बापजी मरे पचासों लोग।
कारण बताओ बाप जी, आज बणियों संजोग॥

तर्ज - मोरध्वज

मगन ढ़ाढ़ी घर जाय, बांसुरी जोर बजाई।
आधी रात रा आय, पहुँचा सत्संग मांही॥
नाचत खेलत बाबो सा, घूम रहिया गरणाय।
एक खुणा में जाय ने, ऐड़ी धरी लगाय॥
जगां है आही सूनी, दुखड़ो दूर हटायो, कृपा करी गुरु देव दुखड़ो दूर हटाओ जी।

सेठिया को परचा ( दोहा )

अड़कसर के पास में भक्त आयो एक द्वार।
घर म्हारे गरीबी है, आकर करे पुकार॥
अर्ज सुणो म्हारा बापजी, घर कन्या रो ब्याव।
तड़फ रियोदिन रात, म्हारे पूरण करज्यो चाब॥

तर्ज-मोरध्वज

बोला गुरु देव चिन्ता मत कर भाई।
लग्न भेज दियो जाय, कमी आवेला नांही।
चादर धर पकवान पे, पल्नो दियो उढ़ाय।
हलवा पूड़ी बनाय ने, दिज्यो जान जिमाय॥
कमी थारे आवे नाहीं, सुणो सभी नर नार भकतां री महीमा भाई।

दोहा

तोरण पहुँची बरात जब, हलवों रह्‌या बणाय।
बाबा सा घर आविया, जय जय धुन लगाय॥
हड्डी गुरु सा हाथ में, धो कर करी तैयार।
मरे ऊंट रो पांव ने, हलवा में दियो डार॥

तर्ज-मोरध्वज

सारा कुटुम्ब रा लोग, देख घणां घबराया।
अब कांई होसी हाल, लीला देख शरमाया॥
भगवां चादर लेय ने, हलवा माथे डार।
बाबा सा रे गुरु तणी, जाकर करी पुकार॥
( म्हारे गुरु देव घर आया )।
म्हारे मोजी दास जी आया, हलवा में हाड़ धराया॥
अब म्हे मन मांहि घबराया, म्हे शरण आपरी आया।
समझ में आवे नहीं आ माया, अब केड़ा विघ्न मचाया॥

तर्ज-मोरध्वज

मोजी दास जी हाथ गुरू सा, चल कर आया।
चादर टीवी उठाय, बिखेरी ऐसी माया॥
हड्डी रो चमच्च बणियो, सोना दिखे जड़ाय।
माया देख चरणां पड़या, सब गुरू गुण गाय॥
प्रभुरी महिमा भारी, सुणो सभी नर नार प्रभुरी

( परचा थाणादार ) तर्ज - मोरध्वज

गांव चितावा मांय, चिलमड़ी जाय जलाई।
लादूदास जी संत, मोजी रा गुरू भाई।
थाणादार साहेब आयने, पूछण लागा बात।
गांजा री चिलमां पीबो, ओ है बड़ो अपराध।
थाणां में बन्द कर दीना, दीनां ताला लगाय गुरू ने बन्ध कर दींना।

तर्ज-मोरध्वज

भक्त धूणां पर जाय, हाल बाबा को सुणावे लादूदास जी आज हवा जेल री खाबे।
इतनी सुणी गुरूदेव जी लीन्हो कमण्डल हाथ अलख - अलख आवाज करे, ताला टूटा जात।

प्रभुरी महिमा भारी ( दोहा )

थाणादार शर्माय रिया, छुपरिया आड़ा डोडा।
संता न मत सतावज्यो, नहीं तो मोड़ा देसी गोड़ा।
तर्ज - ( चन्दा रे म्हारी )
मैं तो गुरु सा थारे शरण में आयो,
माफ गुन्हां म्हारो किज्यो जी।
माया थारि अजाब निराली मोहे शरण में लिज्यो जी,
माहिमा थारि नित उठ गास्यु, दान दया रो दिज्यो जी।

बस वालों को चमत्कार ( दोहा )

दांता से एक बस चली, गांव कुचामण जाय।
नई बस नया आदमी, बीच गांवों में जाय॥
मार्ग में श्री बाबा जी चढ़ गया बस रे मांय।
भाड़ो टी.टी. मांगियो मोजी दास जी सुं आय॥

(गाना)

मैं तो रमता जोगी राम, मेरा कया दुनिया से काम।
मै हूं फकड़ मत तूं अकड़, मत कर तू अभिमान॥
नीचे उतरज्या बस से बाबा, किज्यो अब विश्राम।

दोहा

नीचे उतरिया मोजी दास जी, देखी ठंडी छांव।
गहरी घुर्राई निन्दड़ी अब बसड़ी चाले नांय।

दोहा

ड्राईवर ने समझा रिया, समझदार सब लोग।
चरण पकड़ इण संत रा, कहो मेटो सब वियोग॥
कठा सुं पधारिया म्हारा बाप जी, आगे कठीने जाणु आज
महर करो म्हारा बाप जी, म्हारा बाप जी,
समझ न आई लीला आपरी, म्हारा गुन्हां करो सब माफ।
साधु सनतां शरणे रेवस्यु, मत दीज्यो थे श्राप।
महर करी मोजी दास जी, ड्राईवर पकडया पांव।
जी सीट पर बेठिया, लियो गुरुसा रो नांव।

गोपीचन्द भर्तृहरि मिलन ( दोहा )

दोहा एक समय री बारता, सुणी सभी नर नार।
अड़कसर बगीची में, नहीं पाणी री धार॥
कुआ खुदावो बापजी, खर्चा लगे अपार।
आसाम चालो बाबाजी, भक्त करे पुकार॥

तर्ज - हाथ ढ़ाल तलवार

असम जाय गुरु देव, सत्संग किन्हीं।
एक सेठ रे द्वार गुरु कथा किन्हीं॥
पण्ड़ित गोपीराम सभा में आये, सभा में आये।
एक अनोखा राज, गुरु सा बतलाये।
बालक आये दोय, सूरत थी सुहाणी।
सब देख रहा नर नार, गजब कहाणी।
घणों देख सब हेत, सभी हर्षाये।
मोजी दास जी रे शरण, दो बालक कुण आये।

दोहा

सभी भक्त कहने लगे, गुरु सा बतावो बात
दोय बालक कुण आविया, आज आपरे साथ
ऐ बालक नहिं बलवान है, मत पूछो थे मोय।
सभी भक्त अर्दाष करे, कुण बालक था दोय॥

गुरु उवाच तर्ज - खमा-खमा

सारी बस्ती रा भाया, लीला एक सुणल्यों
बालक म्हारे मन भाया जी, म्हारा घणां है हेतालु
एक है गोपीचन्द, दोजो भरतरी
उठकर बन में सिधाया, म्हारा घणां है हेतालु
पूछ लियो तो बालक अब नहीं आसी
नहीं दिखेली थांने छाया, म्हारा घणां है हेतालु
केवे कैलाष बाबा कृपा किज्यों
म्हारा सुतोड़ो भाग जगाया, म्हारा घणां है हेतालु

दोहा

धन्य सतगुरू देव ने, धन्य हमारा भाग।
जीवां तारण कारणे, भाग्य गया अब जाग॥
सुर नर मूनी से विनती, आज करूं पुकार।
भवसागर ऊण्ड़ो घणों, नैया किज्यो पार॥
नन्दकिशोर एक भक्त ने, पीड़ा रही सताय।
खाखोली थारे गांव में, परचा पाया आय॥

तर्ज-मोरध्वज

नन्दकिशोर एक भक्त, खून री उल्टी आईं।
पलक पड़े नहीं चैन, निराषा मन में छाई॥
बाबा सा ने याद किया, हिये कियो गुरू ध्यान।
दर्शन दे मोजी महेश प्रभु, दुख हराया भगवान॥
प्रभुरी महिमा भारी; सुणो सभी नर नार
हाथ जोड़ विनती करूं, सुणियो संत सुजान।
मैं बालक अज्ञान हूँ, रखो भक्त रो मान॥
जोड़ कथा गुरू देव री, गायन करू बखाने।
हाथ जोड़ कैलाश कहे, लाज रखो भगवान॥

भजन

मत ले जीवड़ा नीन्द हरामी
ले ले जीवड़ा नाम प्रभु रो
दिनड़ा बीता जावे रे। दिनड़ा बीता जावे जीवड़ा …
गांव खाखोली धाम आपरो नित उठ परचा पावे रे।
जो जन गुरू सा आवे शरण में, कभी कष्ट नहीं आवे रे।
परमार्थ में जीवन लगायो, घट मांहि जोत जगाबे रे।
दुखियां रा दुख दूर करे दाता, मन वांछित फल पावे रे।
अड़कसर धूणी रा दाता, महिमा वर्णी न जावे रे।
कहवे कैलाश म्हारी लाज राखज्यो, गुण आप रा गावे रे।

भजन

गुरू देव बुलाऊं घर आवज्यो,
आवो आवो गुरूसा घर आवज्यो॥
आप आवो दाता आनन्द होवे,
म्हारे घट में ज्ञान दिरावज्यो। आवो आवो …
मैं हूँ दुर्बल दास आपरो,
म्हारे ज्ञान री ज्योति जगावज्‍यो। आवो आवो …
द‍ध्द अक्षर दाता दूर करो,
म्हांपे ऐसी कृपा करावज्‍यो। आवो आवो …
मोजी दास माहेस गुरू सा आप हो
म्हारी विपदा दूर निवार ज्यों॥ आवों आवो …
गांव खाखोली जन्म लियो थे,
सब भकक्‍तां पे रंग बरसाव ज्यो। आवो आवो …
कहे कैलाश दास पर दया विचारों
म्हारी नैया पार लगाव ज्यो। आवो आवो …

भजन

बाबा सा थारी जग मांही ज्योति सवाई।
मेहर करो म्हारा सतगुरू स्वामी धिन घड़ी आज आई॥
मोजी दास जी नांव आपरो, गांव खाखोली कहाई।
दया की दृष्टि आप राखज्यो, थांकी सूरत मन में भाई॥
घिन घड़ी घिन भाग है म्हारा, किज्यो आप सहाई।
घट मांही ज्ञान ध्यान मोही दिज्यो, चरणा चित लगाई॥
आप स्वामी अन्तर्यामी, दुखियां रा देव कहाईं।
करो कृपा करूणा के सागर, अब मैं भूलूं नांई॥
धूणी अड़कसर धाम धणीरो, दूजो दिखे नाई।
सब भक्‍तां रा सहायक स्वामी, अर्द्ध नारेश्वर कहाईं॥
रामनिवास राव गुरा सा, शरण आपरी आईं।
कर जोरत कैलाश कहे, दया का दान दिराई॥

भजन

दयालु दाता आविया जी, म्हारो नाच उठ‍्यो मन मोर॥
मन महारों मोर निशा सुलाग्यो, हर्ष हुयो चहुं ओर।
उग्यो भाण हुयो उजियारो, पकड़ शब्द री डोर॥
बाबो सा मोजी मन भाया, दाय न आवे ओर।
ज्ञान की गंग गुरू सा बहाई कृपा कीनी जोर॥
शब्द चोट सत्संग में लागी, मिटगा मन का लोर।
देख सुरत म्हारो मन हर्षायो, जैसे नन्द किशोर॥
घिन घिन है थारा माता पिता ने, जन्म दियो है जोर।
कर जोरत कैलाश कहे, लागी भजन सुं डोर॥
जय साहिब की॥
मन मस्ताना..

दोहा

गुरु गुरु सब जन कहे, तपसी संत तमाम।
कौन गुरु का देश है, कौन गुरु का नाम॥

भजन

सतगुरू को जग में सबने बड़ा बताया है।
क्या नाम क्या धाम गुरू का, कहां पर बास बसाया है॥
चार वेद और पुराण अठारह सब में लेख लिखाया है।
श्री भागवत गीता में गुरू को बड़ा बताया है॥
ब्रह्मा विष्णु महेश्वर देवा, तीनों ने बड़ा बताया है॥
नव नाथ सिद्ध चौरासी, सबने गुरू बनाया है।
जन्म मरण से वो नर बच गये, अचल परम पद पाया है॥
ज्ञानी ज्ञान करो घट भीतर, क्यों जगत भरमाया है।

दोहा

सोरठा

धूणी ओघड़ पंथरी, सांगलिया है धाम।
'भँवरा' लकड़ फक्कड़ ने, बार-बार प्रणाम॥

सोरठा

मोजी माणी मौज, अलख नामा अलापता।
खौजी काढ़े खौज, भगवत भजरे भँवरसा॥

कुण्डलिया

मोजी फक्कड़ अखड़ हा, वचन सिद्ध भरपूर।
भजियां बंश बढ़ाय दे, करे दीनता दूर॥
करे दीनता दूर, संकट सारा भगावे।
सेवक रहे निरोग, घर में आनन्द छावे॥
बाबा का भक्त है, चोखी चालती रोजी।
'भँवरा' धूणी धन है, सहाय करे है मोजी॥

भजन

आपां धूणी अड़कसर चालां रे साहिब के दरबार।
साहिब के दरबार चालां सनतां के दरबार ॥टेर॥
मोजी मानदास गुरु पाया, थे उज्ज्वल करली काया।
फोगड़ी में शीश मुंडायारे, छोड़ चले घर बार ॥१॥
भक्‍ती में ध्यान लगाया, थे छोड़ दीनी मोह माया।
भक्‍तां के मन भाया रे, सनतां के सरदार ॥२॥
गांव अड़कसर आया, धुणी का पाया लगाया।
झोली का भोग लगायारे, मां है पराई नार ॥३॥
स्वामी सांग दिखावे, अर्द्ध नरेश्वर बण जावे।
भँवराराम जस गावे रे, नहीं जाण सके संसार ॥४॥

तर्ज - राग दरबारी - पूरण परमानन्द

दोहा - गुरु कृपा से संत जना, पावे परम सुख धाम।
संत रुप घर अवतरे, बाबा मोजी राम॥
दोहा - खाखोली में जन्मिया, जांगिड़ कुल परिवार।
पूर्व जन्म का भाग से कृपा करी करतार॥

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राम रस पी लियो सा, जग में बाबो मोजी दास ॥टेर॥
खाखोली में जनम लियो, जांगिड़ वंश में नाम कियो।
राम नाम मन भाय गयो ऐसी लागी आस ॥टेर॥
रामरस…
प्रथम वैराग दक्षिण में जाग्या, मन का भ्रम सब भाग्या।
राम नाम रटने को लाग्या, छोड़ी जग की आस ॥टेर॥
रामरस…
देख वैराग लोग यूं कहवे, मन ही मन में बात बणावे।
बाबो सा घर में लख जावे, अलख निरंजन पास ॥टेर॥
रामरस…
अलख निरंजन जाप जपे, जय साहब की टेर रटे।
भगतों के सब कष्ट कटे, सदा आप की आस ॥टेर॥
रामरस…
जाय अडकसर धूणा धुकाया, दुनियां का बहुकष्ट मिटाया।
भक्‍तों का करज्यो चित चाया, कल्लू चरण को दास ॥टेर॥
रामरस…

भजन

तर्ज - रावणा रे देश गयो, सीता को संदेश लायो
दोहा-प्रथम विनय है आप से, थे सामर्थ बलवान।
रिद्धि सिद्धि अरू संपती, दिज्यो संत सुजान॥
सतगुरू मोजी महाराज, सिद्ध करो मन के काज।
रखियो हमारी लाज, दास में तुम्हारो जी ॥टेर॥
छन्द दोहा जानूं नांही, दद अक्षर को टालो सांई।
मोजी दास मन को मांही, प्रेम है तुम्हारो जी ॥१॥
आप हो भक्तों के दास, दुष्टन हूं को करो नाश।
दर्शन की लागी आस, बेगा ही पधारो जी ॥२॥
दीजिये गुरू जी दर्शन, कर देवो थे मन को प्रसन्न।
तन मन धन अर्पन, आपसे नहीं न्यारो जी ॥३॥
कब से खड़ा हूं द्वार, सामर्थ को करूं पुकार।
नाम तणुं है आधार, नैया पार उतारो जी ॥४॥
जो बाबा का नाम उच्चा रे, बाबा कष्ट कलेश निवारे।
तुम हो भक्तों के रखवारे, भव से पार उतारो जी ॥५॥
कहे कल्लू मोजीराम रखना याद सुबह और शाम।
सामर्थ को करू प्रणाम, काज भी सुधारों जी ॥६॥

भजन

लगन लागी रे म्हाने मोजी पावन की
पावन की रे घर आवन की ॥टेर॥ लगन…
छोड़ काज और लाज जगत की,
निश दिन ध्यान लगावन की ॥टेर॥ लगन…
झिल मिल कारी ज्योत निराली,
जैसे बिजली सावन की ॥टेर॥ लगन…
सुरत उजाली खुल गई ताली,
गगन महल घर जावन की ॥टेर॥ लगन…
नन्द किशोर तो करे विनती,
भव सागर पार लघावन की ॥टेर॥ लगन…

मुलकावली

चौलूखा को पाय कर फोगड़ी में मत खोय रे।
मौलासर ने देख पहले, आनन्द पुरा मत सोय रे ॥१॥
हर्ष में तो आगमन किया, कुचामण में शोक रे।
माहाना में फंसियो भारी, इन्द्रपुरा ने रोक रे ॥२॥
आजवा से चेतो भाया, अखिर हुसी रोल रे।
दीनदारपुरा ने याद कर, सायपुरा को कोल रे ॥३॥
सांगलिया में फिरिया भारी, गुमानपुरा के पास रे।
अड़कसर में रहवतां, क्यों जसवन्तगढ़की आस रे ॥४॥
दौलतपुरा में फुल्यो कीकर, आखर पड़सी छापरी।
टेवली तो दिखे कोनी, भँवरा जासी भाखरी ॥५॥
डीडवाना में रहना भाया, धनकोली रह जावसी।
बनवासा में बासा करसी, खाखोली हो जाबसी ॥६॥
कुचेरा ने सही मानले, नागौर अन्त जाणां है।
भाड़ासर तो भिखणवासी, जामनगर का थाणा है ॥७॥
सेवा से पायली मावा, सूपका ज्याँ छाणी हैं।
मीठड़ी रेण सुजानगढ़, नावां की मौजां माणी है ॥८॥
सांभर राखो चितावा, खूड़ नहीं भाखणां।
चौरासी से देवगढ़ पावा, जतनपुरा राखणां ॥९॥
मुलकावली का अर्थ लगासी, कीचक से है दूर रे।
भँवराराम भाकर भाखे, दयालपुरा भरपूर रे ॥१०॥
गांवड़ा का नांवड़ा, ए अर्थ करियां अनमोल रे।
सज्जन पुरुष सत्संग में पूछे, अर्थ बतावुं खोल रे ॥११॥

अर्थ

हे मनुष्य इस मनुष्य रुपी चौला को प्राप्त करके, फोकट में क्यों खो रहे हो।
इसका मोल देखो कितना कीमती है, यों ही आनन्द में मत सोते रहो ॥१॥
इस संसार में आए तब बड़ी खुशी हुई और जब जावागे तो दुख होगा।
मोह में फंस रहे हो, इन्द्रियों को काबु करो ॥२॥
आज से ही चेतकर चलो नहीं तो रोल ( मजाक ) होगी।
दीनदयाल को याद करो साहिब के घर का कोल है ॥३॥
स्वांग लेकर चाहे कितना भी फिरो जब तक गुमान ( गर्व ) पास है, कुछ प्राप्ति नही होगी।
अकड़ाई में रहने से यश नहीं मिल सकता ॥४॥
दौलत ( धन ) में क्यों फूल रहे हो आखिर तो छापा पड़ने वाला है।
यह देही तो दिखाई नहीं देगी और भँवरा ( आत्मा ) निकल कर भाग जायेगा ॥५॥
डीड ( संतोष ) में रहना, धन यहीं रह जायेगा।
अन्त में वन में वास होगा और शरीर की राख हो जायेगी ॥६॥
यहाँ से कूच करना है इसको सही मानलो और अन्त में नंगा जाना है।
यह भाडा तो बिखर जायेगा और यम के नगर का थाना है ॥७॥
सेवा करने से ही मावा पावोगे, यह बात सूप ( छाजला ) की तरह छाणी हुई है।
मिठास से संत पुरूषों के साथ रहो और नांव की मौजां माणो ॥८॥
इस चित को सम्भाल के रखो, कूड़ नहीं बोलना चाहिए।
चौरासी लाख योनियों में से मनुष्य योनि मिली है, अब यत्न पूरा रखना ॥९॥
इस मुलकावली का अर्थ लगाकर जो चलेगा वह कुकर्म रूपी कीचड़ से दूर हो जायेगा।
भँवराराम भाकर कह रहे है कि मनुष्य को दया भरपूर रखनी चाहिए ॥१०॥
ये गाँवों के नाम है परन्तु अर्थ करने पर अनमोल साबित होते है।
अगर कोई सज्जन पूछे तो मैं अर्थ खोलकर ( स्पष्ट ) बता दूँ ॥११॥